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भगवान तुम्हारे दर पे भक्त आन खड़े हैं

  भगवान तुम्हारे दर पे भक्त आन खड़े हैं संसार के बंधन से परेशान खड़े हैं, परेशान खड़े हैं ओ मालिक मेरे ओ मालिक मेरे)- 2 १. संसार के निराले कलाकार तुम्ही हो, सब जीव जंतुओं के सृजनहार तुम्हीं हो हम प्रभुका मन में लिए ध्यान खड़े हैं .... संसार के बंधन... २. तुम वेद ज्ञान दाता,पिताओं के पिता हो वह राज कौन सा है, जो तुमसे छिपा हो हम तो हैं अनाड़ी बालक बिना ज्ञान खड़े हैं संसार के बंधन... ३. सुनकर विनय हमारी स्वीकार करोगे मंझधार में है नैया प्रभु पार करोगे हर कदम कदम पर आके ये तूफान खड़े हैं संसार के बंधन... ४.दुनिया में आप जैसा कहीं ओर नहीं है इस ठौर के बराबर कहीं ठौर नहीं है अपनी तो पथिक यह मंजिल जो पहचान खड़े हैं संसार के बंधन....

डूबतों को बचा लेने वाले, मेरी नैया है तेरे हवाले।

डूबतों को बचा लेने वाले, मेरी नैया है तेरे हवाले। लाख अपनों को मैंने पुकारा, सबके सब कर गए हैं किनारा।  और देता न कोई दिखाई, सिर्फ तेरा ही अब तो सहारा।  कौन तुझ बिन भँवर से निकाले। मेरी नैया है तेरे हवाले..……....... जिस समय तू बचाने पे आए, आग में भी बचा कर दिखाए।  जिस पर तेरी दया दृष्टि होवे, उसपे कैसे कहीं आँच आए।  आँधियों में भी तू ही सँभाले ।  मेरी नैया है तेरे हवाले....….............. पृथ्वी सागर व पर्वत बनाए, तूने धरती पे दरिया बहाए।  चाँद सूरज करोड़ों सितारे, फूल आकाश में भी खिलाए।  तेरे सब काम जग से निराले।  मेरी नैया है तेरे हवाले.............. बिन तेरे चैन मिलता नहीं है, फूल आशा का खिलता नहीं है।  तेरी मर्जी बिना तो जहाँ में, 'पथिक' पत्ता भी हिलता नहीं है।  तेरे वश में अंधेरे उजाले ।। मेरी नैया है तेरे हवाले..................

प्रभु तेरी भक्ति का वर मांगते हैं। झुके तेरे दर पे वो सर मांगते हैं।।

 प्रभु तेरी भक्ति का वर मांगते हैं।  झुके तेरे दर पे वो सर मांगते हैं।। बुरे भाव से जो न देखे किसी को।  हम आँखों में ऐसी नजर मांगते हैं।। प्रभु तेरी भक्ति का........... पड़े अगर मुसीबत न झोली पसारें। हम हाथों में ऐसा हुनर मांगते हैं।।  पुकारे कोई दीन अबला हमें गर।  घड़ी पल में पहुँचे वो वर मांगते हैं।। प्रभु तेरी भक्ति का............. जो बेताब जुल्म और सितम देखकर हो।  तड़पता हुआ वो जिगर मांगते हैं।।  दुःखी या अनाथों की सेवा हो जिससे ।  प्रभु अपने घर ऐसा जर मांगते हैं।। प्रभु तेरी भक्ति का.............

प्रभु जी इतनी सी दया कर दो, हमको भी तुम्हारा प्यार मिले

  प्रार्थना प्रभु जी इतनी सी दया कर दो, हमको भी तुम्हारा प्यार मिले। कुछ और भले ही मिले न मिले, प्रभु दर्शन का अधिकार मिले । । 1 ।। जिस जीवन में जीवन ही नहीं, वह जीवन भी क्या जीवन है। जीवन तब जीवन बनता है, जब जीवन का आधार मिले।।2।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो...................... सब कुछ पाया इस जीवन में, बस एक तमन्ना बाकी है। हर प्रेम पुजारी के अपने, मन मंदिर में दातार मिले।।3।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो............. जिसने तुमसे जो कुछ मांगा, उसने ही वही तुम से पाया।  दुनिया को मिले दुनिया लेकिन, भक्तों को तेरा दरबार मिले।।4।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो.......... हम जन्म जन्म के प्यासे हैं, और तुम करुणा के सागर हो। करुणानिधि से करुणा रस की, एक बूँद हमें इक बार मिले। ।5।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो.............. कब से प्रभु दर्शन पाने की, हम आस लगाए बैठे हैं। पल दो पल भीतर आने की, अनुमति अनुपम सरकार मिले। ।6।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो.......... इस मार्ग पर चलते-चलते, सदियाँ ही नहीं युग बीत गए। मिल जाए 'पथिक' मंजिल अपनी, हमको भी तुम्हारा द्वार मिले। ।7।। प्रभु जी इतनी सी दया ...

कण-कण में जो रमा है, हर दिल में है समाया। उसकी उपासना ही कर्त्तव्य है बताया।।

 ईश महिमा कण-कण में जो रमा है, हर दिल में है समाया।  उसकी उपासना ही कर्त्तव्य है बताया।। दिल सोचता है खुद वो, कितना महान होगा।  इतना महान जिसने, संसार है बनाया।। कण-कण में जो रमा है............. देखो ये तन के पुर्जे, करते हैं काम कैसे।  जोड़ों के बीच कोई, कब्जा नहीं लगाया।। कण-कण में जो रमा है............ इक पल में रोशनी से, सारा जहान चमका।  सूरज का एक दीपक, आकाश में जलाया।। कण-कण में जो रमा है.......... अब तक यह गोल धरती, चक्कर लगा रही है।  फिरकी बना के कैसी, तरकीब से घुमाया।। कण-कण में जो रमा है................. कठपुतलियों का हम ने, देखो अजब तमाशा।  छुप कर किसी ने सब को, संकेत से नचाया।। कण-कण में जो रमा है............ हर वक्त बन के साथी, रहता है साथ सब के।  नादान 'पथिक' उसको, तू जानने ना पाया।। कण-कण में जो रमा है.........

जाप ना किया है तूने ओ३म् नाम का। करुणानिधान प्यारे सुख धाम का

 ओ३म् महिमा जाप ना किया है तूने ओ३म् नाम का।  करुणानिधान प्यारे सुख धाम का।। टेक ।। जिन्दगी में कोई शुभ करम न किया।  धर्म ना किया, दूर भरम ना किया।।  बोल तेरा तन फिर किस काम का।।1।। जाप ना किया है तूने.............. दिन-रात जिसको सजाने में लगा।  अपने ही मन को रिझाने में लगा।।  कुछ ना बनेगा तेरे गोरे चाम का।।2।। जाप ना किया है तूने............... उल्टे ही कर्म तू कमाये उमर भर।  पेड़ ही बबूल के लगाये उमर भर।।  कहाँ से मिलेगा तुझे फल आम का।।3।। जाप ना किया है तूने................. खुशी का पैगाम तो प्रभात लाई है।  और भी बेमोल कुछ साथ लाई है।।  जाने क्या संदेशा लाये वक्त शाम का।।4।। जाप ना किया है तूने................

सृष्टि से पहले अमर ओ३म् नाम था, अमर ओ३म् नाम था, आज भी है और कल भी रहेगा।

 ओ३म् महिमा सृष्टि से पहले अमर ओ३म् नाम था, अमर ओ३म् नाम था,  आज भी है और कल भी रहेगा।  सूरज की किरणों में उसी का तेज समाया है।  और चाँद सितारों में उसी की शीतल छाया है।  पृथ्वी की गोद में उसी का दुलार था, उसी का दुलार था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले.................... भवरों की तानों में मधुर संगीत उसी का है।  फूलों की यौवन में रंगीला गीत उसी का है।  आकाश जल थल में वही कलाकार था, वही कलाकार था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले....................... सुख दुःख का लम्बा लेखा विधाता ने रचाया है।  ऐ बन्दे ! तेरे कर्मों का नक्शा सामने आया है।  तेरे पिछले कर्मों का उसी पे हिसाब था, उसी पे हिसाब था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले................. न कर अभिमान एक दिन जान निकल जायेगी।  ये सजी सजाई काया मिट्टी में मिल जायेगी।  मुक्ति का एक रास्ता प्रभु का ही ध्यान था प्रभु का ही ध्यान था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले अमर ओ३म् नाम था, अमर ओ३म् नाम था,  आज भी है और कल भी रहेगा।

तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया

 तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया दुनियाँ की ठोकर खाके, जब हुआ कभी बेसहारा ना पाके अपना कोई, जब मैंने तुझे पुकारा हे नाथ!! मेरे सिर ऊपर, तूने अमृत बरसाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया तू सँग में था नित मेरे, ये नयना देख न पाए चंचल माया के रँग में, ये नयन रहे उलझाये जितनी भी बार गिरा हूँ, तूने पग-पग मुझे उठाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया भवसागर की लहरों ने, भटकाई मेरी नैया तट छूना भी मुश्किल था, नहीं दीखे कोई खिवैया तू लहर का रूप पहन कर, मेरी नाव किनारे लाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया हर तरफ तुम्हीं हो मेरे, हर तरफ तेरा उजियारा निर्लेप रमैया मेरे, हर रूप तुम्हीं ने धारा हो शरण तेरी हे दाता, तेरा तुझ ही को चढ़ाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया

दुनिया में रहने वाले, क्या तुझको ये खबर है।

मृत्यु दुनिया में रहने वाले, क्या तुझको ये खबर है।  दो दिन की जिन्दगी है, पल भर का ये सफर है।।  जीना जो चाहते थे, वो भी तो जी ना पाए।  घर बार छोड़के सब मिट्टी में जा समाए।।  कल तेरा मेरा सबका अंजाम ये हसर है। दो दिन की जिन्दगी है,  पल भर आँखों ने तुझको, कितने दिखाये मुर्दे ।  कंधों पे तूने अपने, कितने उठाये मुर्दे।  फिर भी बना है अंधा, जब के तेरी नजर है। दो दिन की जिन्दगी है,  पल भर जब मौत ने पुकारा, कुछ भी न काम आया।  जाते हुओं को देखो, कोई ना रोक पाया।।  सच्चाई से तूं इसकी क्यूं आज बेखबर है। दो दिन की जिन्दगी है,  पल भर मत नाज कर तू अपने एहबाब दोस्तों पे।  लौट आएँगे ये तुझको बस खाक में मिलाके।  तेरा वहाँ ना कोई हमदम ना हमसफर है। दो दिन की जिन्दगी है,  पल भर मरने से पहले तौबा, अपने गुनाह से कर ले।  अनजान मान जा तू, राहे प्रभू के चल दे।  मरने के बाद तेरा मुश्किल बहुत सफर है। दो दिन की जिन्दगी है, पल भर

शुभ विवाह की वर्षगांठ पर, सौ-सौ बार बधाई हो।

शुभ विवाह की वर्षगांठ शुभ विवाह की वर्षगांठ पर, सौ-सौ बार बधाई हो।  सदा रहो तुम मिलकर ऐसे, जैसे दूध मलाई हो।  तुमने जीवन साथी बनकर इतने वर्ष बिताये हैं।  इक-दूजे का हाथ पकड़कर इस मंजिल तक आये हैं। आपस की यह प्रीति हमेशा, हर दिन रात सवाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध. (1) यह आदर्श जीवन तुम्हारा सबको राह दिखाता है।  सद्-गृहस्थ ऐसा होता है यह सन्देश सुनाता है।  तन-मन-धन से जन-गण-मन की सेवा और भलाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध (2) पति-पत्नी दो पहिये समझो, अपने घर की गाड़ी के  दोनों ही माली हैं सुन्दर, फूलों की फुलवारी के। जीवन स्वर्ग बने धरती पर, ऐसी नेक कमाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध (3) सुखद स्वास्थ्य हो तुम दोनों के, जीवन को आधार मिले  बीते समय प्रभु-भक्ति में, परमेश्वर का प्यार मिले  'पथिक' चलो सुख की राहों पर, ईश्वर सदा सहाई हो  सदा रहो तुम मिलकर ऐसे जैसे दूध मलाई हो शुभ विवाह की वर्षगांठ पर सौ-सौ बार बधाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध ........ (4)

कब हमारा मन सन्ध्या और उपासना में लगने लगेगा

 *कब हमारा मन सन्ध्या और उपासना में लगने लगेगा ?* लोग पूछा करते हैं कि हमने मान तो लिया कि ईश्वर का अस्तित्व है, ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव अनन्त हैं, उसके नाम भी अनन्त हैं । परन्तु क्या बात है कि हमारा मन ईश्वर की पूजा में नहीं लगता है, पूजा के समय मन भागता क्यों है, मन को हम वश में कैसे करें ? मन अपने वश में नहीं रहता, यह शिकायत सबको है, सबकी परेशानी सच्ची है । आपकी भी यह कठिनाई है, और बड़े-बड़े संन्यासियों और योगियों की भी । हम संध्या करने बैठते हैं, और जबान से तो सन्ध्या के सारे मन्त्र पढ़ जाते हैं, मन्त्र तो पढ़े जाते हैं, परन्तु मन कहीं और विचर रहे होते हैं । ऐसा क्यों होता है ? इसके सोचने का हमें प्रयत्न करना चाहिये । सन्ध्या के समय आपका मन भागता है, यह बात तो सच्ची है, परन्तु जब आप शतरंज का खेल खेलते हैं, ताश खेलते हैं, तो मन क्यों नहीं भागता है ? क्रिकेट की कमेण्टरी सुनने के लिए भीड़ क्यों उतावली रहती है ? टेस्टमैच देखने में मन क्यों लगता है ? सिनेमा और सरकस के समय मन क्यों नहीं भागता है ? मैं जब बच्चा था, तब गणित में मन नहीं लगता था, पर जब लगने लगा, तो अंकगणित या रेखागणित म...