संदेश

Bhajan लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

परमपिता परमेश्वर तूने, किस भाँति सन्सार रचा, स्वयं विधाता निराकार, तूने जग कैसे साकार रचा

परमपिता परमेश्वर तूने,  किस भाँति सन्सार रचा,  स्वयं विधाता निराकार,  तूने जग कैसे साकार रचा परमपिता ऽऽऽऽऽऽऽ  तारों से भरा नभ का आँगन,  चन्दा सूरज कर रहे गमन घन घोर घटा करती गर्जन,  कहीं शीतल मन्द सुगन्ध पवन यह बिन सीमा का नील गगन,  जिसमें पक्षी कर रहे भ्रमण, दे रहा उन्हें निशिदिन भोजन,  हे जगदीश्वर !!! तुम्हें धन्य धन्य  कौन सी वस्तु की शक्ति से,  सब कुछ सर्वाधार रचा  स्वयं विधाता निराकार,  तूने जग कैसे साकार रचा परमपिता ऽऽऽऽऽऽऽ  कहीं ऊँचें पर्वत वन उपवन,  कहीं गहरे सागर करे नमन, कहीं रेत के टीले औषधि वन (अन्न),  कहीं हीरे मोती लाल रतन  कहीं काँटों में खिल रहे सुमन,  कहीं महक रहा शीतल चन्दन कहीं बोल रहे हैं पक्षीगण,  कहीं भवरों की प्यारी गुन्जन  कहीं डाली पर फूल खिले हैं,  और फूल के नीचे खार रचा  स्वयं विधाता निराकार,  तूने जग कैसे साकार रचा परमपिता ऽऽऽऽऽऽऽ कितने सुन्दर क्या कहना,  इस मस्तक में दो नयना, बिना तेल इन दो दीपों का,  आठों प्रहर जलते रहना मुख में दाँतों का ...

ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य

 • "ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य • • बुद्धि का एक गुण - ऊहापोह (सिद्धांत रक्षा - वाद-विवाद) • • ऊहा द्वारा सिद्धान्त को समझाने और उसकी रक्षा करने का चमत्कार ! • ------------------------------- - पंडित सत्यानन्द वेदवागीश घटना भारत के स्वतन्त्र होने से पूर्व की है। पेशावर-आर्यसमाज का वार्षिकोत्सव था। एक दिन रात्रि के अधिवेशन में पं० बुद्धदेव जी विद्यालंकार का 'ईश्वर' विषय पर व्याख्यान था। उस समय अध्यक्षता कर रहे थे वहाँ के डिप्टी कमिश्नर, जो थे तो मुसलमान पर सुपठित होने के कारण उदार विचारों के थे।  पण्डित जी ने व्याख्यान में ईश्वर के गुणों का वर्णन करते हुए 'सर्वशक्तिमान्' का अर्थ बताया - “सर्वशक्तिमान् का यही अर्थ है कि ईश्वर अपने कर्म करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। अपने कर्मों के करने में वह किसी अन्य की सहायता नहीं लेता है। सृष्टि की रचना करना, सृष्टि का पालन करना, उसका संहार (प्रलय) करना और जीवों के कर्मों का निरीक्षण तथा तदनुसार फलप्रदान करना - ये जो ईश्वर के कर्म हैं, उनके करने में वह सम्पूर्ण शक्ति से युक्त है - सर्वशक्तिमान् है। किन्तु ...

ओ३म् का जाप सर्वश्रेष्ठ।

 ओ३म् ओ३म् का जाप सर्वश्रेष्ठ। ==============    ओ३म् का जाप स्मरण शक्ति को तीव्र करता है,इसलिए वेदाध्ययन में मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का प्रयोग किया जाता है।     मनुस्मृति में आया है कि ब्रह्मचारी को मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का उच्चारण करना चाहिए।      क्योंकि आदि में ओ३म् शब्द का उच्चारण न करने से अध्ययन धीरे धीरे नष्ट हो जाता है तथा अन्त में ओ३म् शब्द न कहने से वह स्थिर नहीं रहता है। २/७४ ।।      कठोपनिषद में नचिकेता की कथा आती है।नचिकेता ने यम ऋषि से पूछा- हे ऋषि,मुझे यह बताइये कि संसार में सार वस्तु क्या है?      इस पर ऋषि ने उत्तर दिया,सब वेद जिस नाम के संबंध में वर्णन करते हैं,सभी तपस्वी जिसके विषय में कहते हैं,जिसकी प्राप्ति की इच्छा करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं,उस नाम के संबंध में मैं तुझे संक्षेप में बताता हूं-       वह ओ३म् नाम(शब्द) ही परमात्मा का श्रेष्ठतम नाम है।      यजुर्वेद में आया है कि मृत्यु को जीतने और मोक्ष को प्राप्त करने के लिए ओ...

वेदों के प्रश्नोत्तर सुनना,तुमको आज बताता हूँ। सुन करके जीवन में उतारो,वेद की बात बताता हूँ।

चित्र
               चतुर्वेद प्रश्नोत्तरी वेदों के प्रश्नोत्तर सुनना,तुमको आज बताता हूँ। सुन करके जीवन में उतारो,वेद की बात बताता हूँ। ।टेक।।  आदि सृष्टि में ईश्वर ने वेदों का हमको ज्ञान दिया।  क्या है करना क्या ना करना,प्रभु ने यह आदेश दिया। महाकवि का महाकाव्य है,वेद की बात बताता हूँ।।१।।  "ऋग्वेद " कौन है और कौन सा है,नाम तुम्हारा क्या बोलो। तुमको जानू तृप्त करूँ मैं,धन आदि से तुम बोलो।  सुखाभिलाषी श्रेष्ठवीर हूँ,वेद की बात बताता हूँ।।२।।  कर्म फल ईश्वर देता है,जीवमात्र है फल भोक्ता।  इस जग का आधार बताओ,कारण कार्य क्या होता। निमित्त कारण प्रभु को माना,वेद की बात बताता हूँ।।३।।  जग का भी आधार वही है,जग में वह आच्छादित है। पृथिवी द्यौ भी उसने बनाए,वह जग में अबाधित है। परमेश्वर ही परम पूज्य है वेद की बात बताता हूँ।।४।।  कौन रोकता पढ़ने से है ,विद्यार्थी से दूर रखे।  जो शिक्षक अच्छा है पढ़ाता,उनके पास उनको रखे। बनके विवेकी शिक्षित करना,वेद की बात बताता हूँ ।।५।।  अविनाशी से अविनाशी भी उसी ब्रह्म को है मान...

उपनिषद् में ईश्वर का विवरण

चित्र
 *उपनिषद् में ईश्वर का विवरण* "यद्वाचाऽनभ्युदितं, येन वागभ्युद्यते । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि, नेदं यदिदमुपासते ।।"          (केन० १/४)         जो वाणी द्वारा प्रकाशित नहीं होता, जिससे वाणी का प्रकाश होता है, उसी को तू ब्रह्म जान । जिसका वाणी से सेवन किया जाता जाता है, वह ब्रह्म नहीं है । "यन्मनसा न मनुते, येनाहुर्मनो मतम् । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि, नेदं यदिदमुपासते ।।"            (केन० १/५)           जिसका मन से मनन नहीं किया जाता, जिसकी शक्ति से मन मनन करता है, उसी को तू ब्रह्म जान । जिसका मन से मनन किया जाता है, वह ब्रह्म नहीं है । "यच्चक्षुषा न पश्यति, येन चक्षूंषि पश्यन्ति । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि, नेदं यदिदमुपासते ।।"           (केन. १/६)           जो आँख से नहीं देखा जाता, जिसकी शक्ति से आँख देखती है, उसी को तू ब्रह्म जान । जो आँख से देखा जाता है, वह ब्रह्म नहीं है । "यच्छ्रोत्रेण न श्रृणोति, येन श्रोत्रमिदं श्रुतम् । तदेव ब्रह...

ईश्वर का आश्रय ही सबसे बड़ा आश्रय

 *ईश्वर का आश्रय ही सबसे बड़ा आश्रय* # *ईश्वर* कहता है, "अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनं न मृत्यवेऽव तस्थे कदा चन । सोममिन्मा सुन्वतो याचता वसु न मे पूरवः सख्ये रिषाथन ।।"               (ऋ० १०/४८/५)               मैं परमैश्वर्यवान् सूर्य के सदृश सब जगत् का प्रकाश हूँ । कभी पराजय को प्राप्त नहीं होता और न कभी मृत्यु को प्राप्त होता हूँ । मैं ही जगद्रूप धन का निर्माता हूँ । सब जगत की उत्पत्ति करने वाले मुझ ही को जानो ।  हे जीवों ! ऐश्वर्य-प्राप्ति के यत्न करते हुए तुम लोग विज्ञानादि धन को मुझसे माँगो और तुम लोग मेरी मित्रता से अलग मत होओ । # *कठोपनिषद्* में यमाचार्य ने कहा है, "एतदालम्बनं श्रेष्ठमेतदालम्बनं परम् । एतदालम्बनं ज्ञात्वा ब्रह्मलोके महीयते ।।"               (कठ० २/१७)               यह आश्रय श्रेष्ठ और सर्वोपरि है । इस आलम्बन को जानकर मनुष्य ब्रह्मलोक में आनन्दित होता है । # *रहीम* सुन्दर शब्दों में कहते हैं,  "अमरबेलि बिन मूल क...

रामसेतु निर्माण:

चित्र
*रामसेतु निर्माण:* क्या इसमें कहीं तैरने वाले पत्थरों का जिक्र आया? नल: मैं महासागरपर पुल बाँधनेमें समर्थ हूँ, अतः सब वानर आज ही पुल बाँधनेका कार्य आरम्भ कर दें' ॥ ५३ ॥ तब भगवान् श्रीरामके भेजनेसे लाखों बड़े-बड़े वानर हर्ष और उत्साहमें भरकर सब ओर उछलते हुए गये और बड़े-बड़े जंगलों में घुस गये ॥ ५४ ॥ वे पर्वतके समान विशालकाय वानरशिरोमणि पर्वतशिखरों और वृक्षों को तोड़ देते और उन्हें समुद्रnतक खींच लाते थे ॥ ५५ वे साल, अश्वकर्ण, धव, बाँस, कुटज, अर्जुन, ताल, तिलक, तिनिश, बेल, छितवन, खिले हुए कनेर, आम और अशोक आदि वृक्षोंसे समुद्रको पाटने लगे ॥ ५६-५७ ॥ वे श्रेष्ठ वानर वहाँ के वृक्षों को जड़से उखाड़ लाते या जड़ के ऊपर से भी तोड़ लाते थे। इन्द्रध्वजके समान ऊँचे- ऊँचे वृक्षोंको उठाये लिये चले आते थे ॥ ५८ ॥ ताड़ों, अनारकी झाड़ियों, नारियल और बहेड़ेके वृक्षों, करीर, बकुल तथा नीमको भी इधर-उधरसे तोड़-तोड़कर लाने लगे ॥ ५९ ॥ महाकाय महाबली वानर हाथीके समान बड़ी-बड़ी शिलाओं और पर्वतोंको उखाड़कर यन्त्रों (विभित्र साधनों) द्वारा समुद्रतटपर से आते थे ॥ ६० ॥ शिलाखण्डोंको फेंकनेसे समुद्रका जल सहसा आकाशमे...

Best Pandit in Gaya, Purohit in Gaya | all puja in Gaya

चित्र
  Welcome to aryasamajmandirpandit.in    Trusted Partner for Rituals in Gaya At aryasamajmandirpandit,  we deeply  understand the importance of performing traditional rituals with utmost devotion and precision. Our dedicated services ensure that your religious needs are met with the highest standards of care and authenticity. Whether you are looking for Hindi pandit in Gaya, our experienced and knowledgeable team is here to assist you with all your spiritual and ritualistic needs. Our Comprehensive Services:   Pandit in Gaya We provide experienced and knowledgeable pandits in Gaya to conduct a variety of rituals. Our pandits, fluent in  Hindi, are well-versed in Vedic practices and ensure that every ceremony is performed with the utmost respect and adherence to tradition. Whether you need a Hindi pandit in Gaya. we are here to meet your requirements. Death Anniversary Rituals in Gaya Honoring the memory of your loved ones on their death anniversary in ...

सनातन धर्म के 13 सुत्र

  सनातन धर्म के 13 सुत्र  *1.प्रश्न  :-  तुम कौन हो ?*                 उत्तर  :-  भारतीय / आर्य ।  *2. प्रश्न  :- तुम्हारा धर्म क्या है ?*                  उत्तर  :-  सत्य सनातन वैदिक धर्म  . *3. प्रश्न  :- तुम्हारे धर्म ग्रंथ क्या है ?*                 उत्तर  :-  चार वेद, चार उपवेद, चार ब्राह्मण ग्रंथ, छ: वेदांग, ग्यारह उपनिषद, छ: दर्शन शास्त्र, मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण, वेदव्यास कृत महाभारत, सत्यार्थ प्रकाश, ऋगवेदादिभाष्यभूमिका। *4. प्रश्न:- तुम्हारे ईश्वर का मुख्य नाम क्या है ?* उत्तर  :- ईश्वर का मुख्य नाम ओ३म्  है  *5. प्रश्न  :- तुम्हारे धर्म का चिन्ह क्या है ?*               *उत्तर  :- चोटी और  जनेऊ है।*  *6. प्रश्न  :- तुम्हारे धर्म की प्रथम आज्ञा क्या है ?*          ...

हवन की सामान्य जानकारी

हवन की सामान्य जानकारी  1.जितना लिखा उतना ही हवन.     घृत की मात्रा जितनी लिखी 5- 6 ग्राम.ऋषि की आज्ञा में ही समृद्धि. 2.उचित मात्रा में घृत एवं शाकल्य से ही उचित लाभ.अन्यथा वातावरण में अधिक कॉर्बन डाई गैस (समिधा से निकलने वाली गैस/धुंआ/गन्दी गैस) से वातावरण अशुद्ध होकर लाभ के स्थान पर हानिकारक होगा.     दमा हो सकता है, फेफड़ों के लिए हानिकारक, रक्त अशुद्ध हो सकता है. 3.अधिक लाभ लेने के लिए ऋतु के अनुकूल अलग -अलग शाकल्य का उपयोग करे.(२ मास की एक ऋतु, वर्ष में ६ ऋतु होती हैं) 4.बाह्य दिखावे के स्थान सदैव यह स्मरण रखे कि मेरे सभी कार्यों को हर क्षण ईश्वर देख रहा है. 5.थोड़ा आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करे कि सभी पदार्थ ईश्वर के ही हैं.हमें तो मात्र उपयोग (हवन,दान) करना है.होते हुए भी यदि उपयोग न कर सको तो संसार में आपसे बढ़कर दरिद्र कौन ? 6.घृत,शाकल्य ...आदि सभी पदार्थ उसी ईश्वर के हैं, इनका उपयोग करना भी उसी की आज्ञा है.पालन करना हमारा कर्त्तव्य/धर्म है और न पालन करना अवज्ञा है. 7.उसकी आज्ञा में हमारी भलाई है   क्यों ?   क्योंकि हवन की औषधीय वायु में प्र...

दीपावली के मन्त्र

 दीपावली के मन्त्र गृहकृत्य -* यतः दीपावली का पर्व वर्ष भर में घरों की लिपाई पुताई आदि संस्कार के लिए विशेषतः उद्दिष्ट है। इसलिए स्व सुविधा के अनुसार दीवाली से पूर्व दिन के सायंकाल तक प्रचलित प्रथानुसार यह सब कार्य समाप्त हो जाना चाहिए। कार्तिक अमावस्या के दिन प्रातःकाल नैत्यिक कर्मों से निवृत्त होकर यज्ञशाला व आवास गृह के तल का गोमय से पुनः लेपन करके स्वदेशीय नवीन शुद्ध वस्त्र परिधानपूर्वक सामान्य व बृहद होम करके निम्नलिखित मन्त्रों से स्थालीपाक से ३१ विशेष आहुतियां दी जायें। स्थालीपाक नवागत श्रावणी शस्य अन्न से बनाया गया पायस (खीर) हो। हवन के अन्य साकल्य में लाजा (नवीन धानों की खील) विशेषतः मिलाई जायें तथा नई शस्य (फसले) जैसे-धान, यव, तिल, बताशा, मूंग इत्यादि मिलाकर आहुतियां देंवें। *ओ३म् शतायुधाय शतवीर्याय शतोतयेऽभिमातिषाहे।*  *शतं यो नः शरदो अजीजादिन्द्रो नेषदति दुरितानि विश्वा स्वाहा।।१।।* *ओ३म् ये चत्वारः पथयो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी वियन्ति।* *तेषां यो आज्यानिमजीजिमावहास्तस्मै नो देवाः परिदत्तेह सर्वं स्वाहा।।२।।* *ओ३म् ग्रीष्मोहेमन्त उतनोवसन्तः शरद्वर्षाः सुवितन्नो...

अन्त्येष्टि संस्कार | Antyeshti Sanskar

चित्र
  अंत्येष्टि संस्कार के साथ विभागीय आत्माओं को चिह्नित करें। अंत्येष्टि संस्कार को नर्मदा, पुरुषमेध या पुरुषयाग के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र संस्कार को मृत्यु के बाद आयोजित किया जाता है, जो विभिन्न प्रथाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अग्नि द्वारा दाह करके यह शीघ्रता से मृत शरीर के पांच तत्वों को उनकी मूल स्थिति में पुनरुद्धार करता है, जो उनके आगामी जीवन की यात्रा का प्रतीक होता है। उनकी अनन्त शांति और मुक्ति तथा उनकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। Mark the solemn departure of departed souls with the Antyeshti Sanskar, also known as Narmada, Purushamedha, or Purushayag. This sacred ceremony, performed after death, encompasses the Vedic funeral rite, considered the most superior among various practices worldwide. Through the cremation by fire, it swiftly restores the five elements of the deceased body to their original state, symbolizing their journey to the afterlife. Seek divine blessings for their eternal peace and liberation, offering prayers for thei...