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भगवान तुम्हारे दर पे भक्त आन खड़े हैं

  भगवान तुम्हारे दर पे भक्त आन खड़े हैं संसार के बंधन से परेशान खड़े हैं, परेशान खड़े हैं ओ मालिक मेरे ओ मालिक मेरे)- 2 १. संसार के निराले कलाकार तुम्ही हो, सब जीव जंतुओं के सृजनहार तुम्हीं हो हम प्रभुका मन में लिए ध्यान खड़े हैं .... संसार के बंधन... २. तुम वेद ज्ञान दाता,पिताओं के पिता हो वह राज कौन सा है, जो तुमसे छिपा हो हम तो हैं अनाड़ी बालक बिना ज्ञान खड़े हैं संसार के बंधन... ३. सुनकर विनय हमारी स्वीकार करोगे मंझधार में है नैया प्रभु पार करोगे हर कदम कदम पर आके ये तूफान खड़े हैं संसार के बंधन... ४.दुनिया में आप जैसा कहीं ओर नहीं है इस ठौर के बराबर कहीं ठौर नहीं है अपनी तो पथिक यह मंजिल जो पहचान खड़े हैं संसार के बंधन....

ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली ले लो रे कोई ओ३म् का प्यारा

ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  ले लो रे कोई ओ३म् का प्यारा  आवाज लगाऊँ गली-गली  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  माया के दीवानों सुन लो  इक दिन ऐसा आयेगा  धन दौलत और रूप खजाना  यहीं धरा रह जायेगा  सुन्दर काया माटी होगी  चर्चा होगी गली-गली  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  मित्र-प्यारे और सगे-सम्बन्धी  एक दिन भूल जायेंगे  कहते हैं जो अपना-अपना  आग में तुझे जलायेंगे  दो दिन का ये चमन खिला है  फिर मुरझाए कली-कली  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  क्यों करता है मेरी-तेरी  तज दे उस  अभिमान को  छोड़ जगत् के झूठे धन्धे  जप ले प्रभु के नाम को  गया समय फिर हाथ न आये  तब पछताये घड़ी धड़ी  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  जिसको अपना कह-कह के  मूरख तू इतराता है  छोड़ के बन्दे साथ विपत्त/विपद् में  कभी न कोई जाता है  दो दिन का ये रैन-बसेरा  आखिर होगी चला चली   ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखरा...

डूबतों को बचा लेने वाले, मेरी नैया है तेरे हवाले।

डूबतों को बचा लेने वाले, मेरी नैया है तेरे हवाले। लाख अपनों को मैंने पुकारा, सबके सब कर गए हैं किनारा।  और देता न कोई दिखाई, सिर्फ तेरा ही अब तो सहारा।  कौन तुझ बिन भँवर से निकाले। मेरी नैया है तेरे हवाले..……....... जिस समय तू बचाने पे आए, आग में भी बचा कर दिखाए।  जिस पर तेरी दया दृष्टि होवे, उसपे कैसे कहीं आँच आए।  आँधियों में भी तू ही सँभाले ।  मेरी नैया है तेरे हवाले....….............. पृथ्वी सागर व पर्वत बनाए, तूने धरती पे दरिया बहाए।  चाँद सूरज करोड़ों सितारे, फूल आकाश में भी खिलाए।  तेरे सब काम जग से निराले।  मेरी नैया है तेरे हवाले.............. बिन तेरे चैन मिलता नहीं है, फूल आशा का खिलता नहीं है।  तेरी मर्जी बिना तो जहाँ में, 'पथिक' पत्ता भी हिलता नहीं है।  तेरे वश में अंधेरे उजाले ।। मेरी नैया है तेरे हवाले..................

प्रभु तेरी भक्ति का वर मांगते हैं। झुके तेरे दर पे वो सर मांगते हैं।।

 प्रभु तेरी भक्ति का वर मांगते हैं।  झुके तेरे दर पे वो सर मांगते हैं।। बुरे भाव से जो न देखे किसी को।  हम आँखों में ऐसी नजर मांगते हैं।। प्रभु तेरी भक्ति का........... पड़े अगर मुसीबत न झोली पसारें। हम हाथों में ऐसा हुनर मांगते हैं।।  पुकारे कोई दीन अबला हमें गर।  घड़ी पल में पहुँचे वो वर मांगते हैं।। प्रभु तेरी भक्ति का............. जो बेताब जुल्म और सितम देखकर हो।  तड़पता हुआ वो जिगर मांगते हैं।।  दुःखी या अनाथों की सेवा हो जिससे ।  प्रभु अपने घर ऐसा जर मांगते हैं।। प्रभु तेरी भक्ति का.............

प्रभु जी इतनी सी दया कर दो, हमको भी तुम्हारा प्यार मिले

  प्रार्थना प्रभु जी इतनी सी दया कर दो, हमको भी तुम्हारा प्यार मिले। कुछ और भले ही मिले न मिले, प्रभु दर्शन का अधिकार मिले । । 1 ।। जिस जीवन में जीवन ही नहीं, वह जीवन भी क्या जीवन है। जीवन तब जीवन बनता है, जब जीवन का आधार मिले।।2।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो...................... सब कुछ पाया इस जीवन में, बस एक तमन्ना बाकी है। हर प्रेम पुजारी के अपने, मन मंदिर में दातार मिले।।3।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो............. जिसने तुमसे जो कुछ मांगा, उसने ही वही तुम से पाया।  दुनिया को मिले दुनिया लेकिन, भक्तों को तेरा दरबार मिले।।4।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो.......... हम जन्म जन्म के प्यासे हैं, और तुम करुणा के सागर हो। करुणानिधि से करुणा रस की, एक बूँद हमें इक बार मिले। ।5।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो.............. कब से प्रभु दर्शन पाने की, हम आस लगाए बैठे हैं। पल दो पल भीतर आने की, अनुमति अनुपम सरकार मिले। ।6।। प्रभु जी इतनी सी दया कर दो.......... इस मार्ग पर चलते-चलते, सदियाँ ही नहीं युग बीत गए। मिल जाए 'पथिक' मंजिल अपनी, हमको भी तुम्हारा द्वार मिले। ।7।। प्रभु जी इतनी सी दया ...

कण-कण में जो रमा है, हर दिल में है समाया। उसकी उपासना ही कर्त्तव्य है बताया।।

 ईश महिमा कण-कण में जो रमा है, हर दिल में है समाया।  उसकी उपासना ही कर्त्तव्य है बताया।। दिल सोचता है खुद वो, कितना महान होगा।  इतना महान जिसने, संसार है बनाया।। कण-कण में जो रमा है............. देखो ये तन के पुर्जे, करते हैं काम कैसे।  जोड़ों के बीच कोई, कब्जा नहीं लगाया।। कण-कण में जो रमा है............ इक पल में रोशनी से, सारा जहान चमका।  सूरज का एक दीपक, आकाश में जलाया।। कण-कण में जो रमा है.......... अब तक यह गोल धरती, चक्कर लगा रही है।  फिरकी बना के कैसी, तरकीब से घुमाया।। कण-कण में जो रमा है................. कठपुतलियों का हम ने, देखो अजब तमाशा।  छुप कर किसी ने सब को, संकेत से नचाया।। कण-कण में जो रमा है............ हर वक्त बन के साथी, रहता है साथ सब के।  नादान 'पथिक' उसको, तू जानने ना पाया।। कण-कण में जो रमा है.........

जाप ना किया है तूने ओ३म् नाम का। करुणानिधान प्यारे सुख धाम का

 ओ३म् महिमा जाप ना किया है तूने ओ३म् नाम का।  करुणानिधान प्यारे सुख धाम का।। टेक ।। जिन्दगी में कोई शुभ करम न किया।  धर्म ना किया, दूर भरम ना किया।।  बोल तेरा तन फिर किस काम का।।1।। जाप ना किया है तूने.............. दिन-रात जिसको सजाने में लगा।  अपने ही मन को रिझाने में लगा।।  कुछ ना बनेगा तेरे गोरे चाम का।।2।। जाप ना किया है तूने............... उल्टे ही कर्म तू कमाये उमर भर।  पेड़ ही बबूल के लगाये उमर भर।।  कहाँ से मिलेगा तुझे फल आम का।।3।। जाप ना किया है तूने................. खुशी का पैगाम तो प्रभात लाई है।  और भी बेमोल कुछ साथ लाई है।।  जाने क्या संदेशा लाये वक्त शाम का।।4।। जाप ना किया है तूने................

सृष्टि से पहले अमर ओ३म् नाम था, अमर ओ३म् नाम था, आज भी है और कल भी रहेगा।

 ओ३म् महिमा सृष्टि से पहले अमर ओ३म् नाम था, अमर ओ३म् नाम था,  आज भी है और कल भी रहेगा।  सूरज की किरणों में उसी का तेज समाया है।  और चाँद सितारों में उसी की शीतल छाया है।  पृथ्वी की गोद में उसी का दुलार था, उसी का दुलार था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले.................... भवरों की तानों में मधुर संगीत उसी का है।  फूलों की यौवन में रंगीला गीत उसी का है।  आकाश जल थल में वही कलाकार था, वही कलाकार था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले....................... सुख दुःख का लम्बा लेखा विधाता ने रचाया है।  ऐ बन्दे ! तेरे कर्मों का नक्शा सामने आया है।  तेरे पिछले कर्मों का उसी पे हिसाब था, उसी पे हिसाब था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले................. न कर अभिमान एक दिन जान निकल जायेगी।  ये सजी सजाई काया मिट्टी में मिल जायेगी।  मुक्ति का एक रास्ता प्रभु का ही ध्यान था प्रभु का ही ध्यान था,  आज भी है और कल भी रहेगा। सृष्टि से पहले अमर ओ३म् नाम था, अमर ओ३म् नाम था,  आज भी है और कल भी रहेगा।

तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया

 तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया दुनियाँ की ठोकर खाके, जब हुआ कभी बेसहारा ना पाके अपना कोई, जब मैंने तुझे पुकारा हे नाथ!! मेरे सिर ऊपर, तूने अमृत बरसाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया तू सँग में था नित मेरे, ये नयना देख न पाए चंचल माया के रँग में, ये नयन रहे उलझाये जितनी भी बार गिरा हूँ, तूने पग-पग मुझे उठाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया भवसागर की लहरों ने, भटकाई मेरी नैया तट छूना भी मुश्किल था, नहीं दीखे कोई खिवैया तू लहर का रूप पहन कर, मेरी नाव किनारे लाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया हर तरफ तुम्हीं हो मेरे, हर तरफ तेरा उजियारा निर्लेप रमैया मेरे, हर रूप तुम्हीं ने धारा हो शरण तेरी हे दाता, तेरा तुझ ही को चढ़ाया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया

शुभ विवाह की वर्षगांठ पर, सौ-सौ बार बधाई हो।

शुभ विवाह की वर्षगांठ शुभ विवाह की वर्षगांठ पर, सौ-सौ बार बधाई हो।  सदा रहो तुम मिलकर ऐसे, जैसे दूध मलाई हो।  तुमने जीवन साथी बनकर इतने वर्ष बिताये हैं।  इक-दूजे का हाथ पकड़कर इस मंजिल तक आये हैं। आपस की यह प्रीति हमेशा, हर दिन रात सवाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध. (1) यह आदर्श जीवन तुम्हारा सबको राह दिखाता है।  सद्-गृहस्थ ऐसा होता है यह सन्देश सुनाता है।  तन-मन-धन से जन-गण-मन की सेवा और भलाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध (2) पति-पत्नी दो पहिये समझो, अपने घर की गाड़ी के  दोनों ही माली हैं सुन्दर, फूलों की फुलवारी के। जीवन स्वर्ग बने धरती पर, ऐसी नेक कमाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध (3) सुखद स्वास्थ्य हो तुम दोनों के, जीवन को आधार मिले  बीते समय प्रभु-भक्ति में, परमेश्वर का प्यार मिले  'पथिक' चलो सुख की राहों पर, ईश्वर सदा सहाई हो  सदा रहो तुम मिलकर ऐसे जैसे दूध मलाई हो शुभ विवाह की वर्षगांठ पर सौ-सौ बार बधाई हो। सदा रहो मिलकर तुम ऐसे, जैसे दूध ........ (4)

आदि करूँ - शुभ कर्मों का मैं लेकर तेरा नाम सदा

आदि करूँ - शुभ कर्मों का  मैं लेकर तेरा नाम सदा  अपने संकल्पों से पहले  तेरा नाम लिया मैंने  तेरी अनुमति पाने को ही  तेरा स्मरण किया मैंने  आदि करूँ - शुभ कर्मों का  मैं लेकर तेरा नाम सदा  जीत-हार होती जो होवे   मन में यह सन्तोष रहे  तूने जो आदेश दिया प्रभु ! वही किया परितोष रहे  आदि करूँ - शुभ कर्मों का  मैं लेकर तेरा नाम सदा  तुझे समर्पित रही जिन्दगी  स्वयं सदा निष्काम रहा  रहा न मेरा कुछ भी अपना  तेरा पावन नाम रहा  आदि करूँ - शुभ कर्मों का  मैं लेकर तेरा नाम सदा 

अच्छी लगती अँग्रेजी पर हिन्दी से परहेज है;

अच्छी लगती अँग्रेजी पर हिन्दी से परहेज है; बन गये सब अंगरेज  हैं.. खाली खोखला प्रेम दिखाते, भरा अहम लबरेज है; बन गये सब अंगरेज हैं.. अपने देश मे अपनी भाषा बोलने की आज़ादी है; इसमें भी कैसी खुन्दस और कैसी भई नाराजी है; नहीं बोलने देंगे हिन्दी ये कैसा बंधेज है.. हावी अँग्रेजी हमसब पर लेकिन किसी को नहीं दिखता; उसे रोकने को भी कोई जरा शिकंजा नहीं कसता; खूब  बोलते  अँग्रेजी दफ्तर स्कूल कॉलेज है.. भिन्न-भिन्न भाषाएँ संस्कृति,मिलजुल यह देश रहा; नतमस्तक हो आदर करता, प्रेम  भरा  संदेश  रहा; एक सूत्र में राष्ट्र को जोड़े, हिन्दी की यही इमेज है.. भाषा माँ के जैसी होती, इसमें कोई संदेह नहीं; एक कुटुंब की आर्य भाषाएँ, फिर  रखते नेह नहीं;  हिन्दी सब के मिलन का साधन, केवल यह मैसेज है.. तर्ज़ : ओ३म् नाम का सुमिरन कर ले  

विधिवत पूजन करें शंकर का, आओ मिलकर सावन में,

विधिवत पूजन करें शंकर का, आओ मिलकर सावन में, वेद ज्ञान की कावड लायें, घर-घर मंदिर आँगन में.. परमेश्वर के शिव स्वरूप का हमको दर्शन करना है, महादेव देवों के देव का, वंदन अर्चन करना है; सोचे कैसे चलती सृष्टि, उसके नियम प्रशासन में.. वेद के अंदर पूर्ण सृष्टि के पूर्ण रहस्य समायें हैं, पढ़े - पढ़ायें सभी वेद को, शिव आदेश बतायें हैं; प्रसन्न होता है भोला शंकर, वेद के पठन व पाठन में.. ईश् उपासना यज्ञ हवन को, जो प्रतिदिन अपनाते हैं, मात-पिता गुरु वृद्ध जनों की, सेवा करते जाते है; उनकी रुचि बढ़ती जाती, धर्म आचरण पालन में... सुखदायी 'हित'कारी कामना, सारी पूरी कर देगा, आधि-व्याधि जो तुझे सताती, सारी तेरी हर लेगा.. अब तू छोड़ भटकना भज ले, ओमकार निज प्राणन् में .. वेद ज्ञान की कावड लायें, घर-घर मंदिर आँगन में.. तर्ज़: ओम नाम के हीरे-मोती मैं बिखराऊं

ओ३म् है जीवन हमारा, ओ३म् प्राणाधार है।

 ओ३म् महिमा ओ३म् है जीवन हमारा, ओ३म् प्राणाधार है।  ओ३म् है कर्ता विधाता, ओ३म् पालनहार है।। ओ३म् है दुःख का विनाशक, ओ३म् सर्वानन्द है।  ओ३म् है बल तेजधारी, ओ३म् करुणाकन्द है।। ओ३म् सबका पूज्य है, हम ओ३म् का पूजन करें।  ओ३म् ही के ध्यान से, हम शुद्ध अपना मन करें।। ओ३म् के गुरुमंत्र जपने से, रहेगा शुद्ध मन।  बुद्धि दिन-प्रतिदिन बढ़ेगी, धर्म में होगी लगन।। ओ३म् के जप से हमारा, ज्ञान बढ़ता जाएगा।  अन्त में यह ओ३म् हमको मुक्ति तक पहुँचाएगा ।।

ईश्वर का गुणगान किया कर, कष्ट क्लेश मिटाने को

 ईश्वर का गुणगान किया कर, कष्ट क्लेश मिटाने को।  जीवन की यह नाव मिली है, भव सागर तर जाने को।  दाता ने हाथ दिये हैं, नेक कमाई कर प्यारे।  इन अपने पावन पाँवों को, पावन मग पर धर प्यारे।  नुस्खा है यह इस दुनिया में, जीवन अमर बनाने को ।। ईश्वर का गुणगान किया कर............... दर्द पराया देख के तुझको, दर्द उठे अपने तन में,  हर्षित को लख हर्ष मनायें, भावना भर दे जन-मन में।  यत्न किया कर पतझड़ में भी मधुर बसंत खिलाने को ।। ईश्वर का गुणगान किया कर................. सुख की शीतल छाया कर दे, दुःखिया जन की कुटिया में,  अपने घर में पड़ रहा गर, आलसी बन कर खटिया पर।  मानव चोला फिर न मिलेगा, तुझ को मौज उड़ाने को ।। ईश्वर का गुणगान किया कर .................... विश्व बगीचे के माली की, रचना प्यारी-प्यारी है,  रंग-बिरंगे पुष्प खिलावे शोभा जिनकी न्यारी है।।  अंत नहीं बेअंत है माया कह गये संत जमाने को।। ईश्वर का गुणगान किया कर ....….......…........... परमेश्वर का भक्त वही जो शुभ गुण जीवन में धारे।  पाप के जहरीले कीटाणु, सब चुन-चुन करके मारे।  'हं...

पाके सुन्दर बदन, कर प्रभु का भजन, दुनिया फानी का कोई भरोसा नहीं। जो आया यहाँ, उसको जाना पड़ा, जिन्दगानी का कोई भरोसा नहीं।

पाके सुन्दर बदन, कर प्रभु का भजन,  दुनिया फानी का कोई भरोसा नहीं।  जो आया यहाँ, उसको जाना पड़ा,  जिन्दगानी का कोई भरोसा नहीं। ।1।। बालपन खेल और कूद में खो गया  फिर बुढ़ापे का आसार आने लगा,  इस सुघड़ वेला में, कर कमाई भली,  नौजवानी का कोई भरोसा नहीं।।2।। जिन्दगानी का कोई.......... अरबों वाले गये, खरबों वाले गये,  कितने गोली व गोले रिसाले गये।  कितने राजा गये, कितनी रानी गईं,  राजधानी का कोई भरोसा नहीं।।3।। जिन्दगानी का कोई............. श्रेष्ठ जीवन बना, कर सभी का भला,  तेरे जीवन में सुख शांति आ जायेगी।  गर करेगा भला, तेरा होगा भला,  बदगुमानी का कोई भरोसा नहीं।।4।। जिन्दगानी का कोई........... खाली हाथों यहां से सिकन्दर गया,  सब खजानों की चाबी धरी रह गयी।  वैद्य लुकमान को भी कजा खा गई,  लाभ हानि का कोई भरोसा नहीं। ।5।। जिन्दगानी का कोई.............

हक छीन कर किसी का न चैन पायेंगा तू ।

 हक छीन कर किसी का न चैन पायेंगा तू । देगा जबाब क्या जब परलोक जायेगा तू । हक छीन कर.................. क्यों फूलता है जग में भगवान तू नहीं है। सबसे बड़ा जगत में बलवान तू नहीं है। अपने किये पे फिर बस आँसू बहायेगा तू ॥ देगा जबाब.......... हक छीन----- औरों का घर जलाकर क्यों हाथ सेकता है,  दुनियाँ भले न देखें भगवान देखता है। उजड़े हुए घरों को कैसे बसायेगा तू " देगा जबाब.......... हक छीन......... बेजान धन की खातीर कितने उजाड़े जीवन,  अंतिम समय में प्राणि जायेगा नग्न ये तन । फल भोगना पड़ेगा जो भी कर्म करेगा तू, देगा जबाब............. हक छीन.......... भौतिक सुख वैभव का यू ही अभिमान करता,  पापों की धरी जो गठरी उसका भी न ध्यान करता । प्राण शक्ति विन देह को कैसे सजायेगा तू । देगा जबाब ............   हक छीन........... कौन ऐसा कर्म है जो जिसको छुपा सकेगा,  कण-कण में वो रमा न कहीं भी छुप सकेगा।  सर्वत्र है विधाता यह जान ले तू   देगा जबाब................. इक छीन...............

अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में ।

अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में । है जीत तुम्हारे हाथों में, है हार तुम्हारे हाथों में ।।१।। मेरा निश्चय है बस एक यही, इक बार तुम्हें पा जाऊँ मैं । अर्पण कर दूँ जगती भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में ।। या तो मैं जग से दूर रहूँ और जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ । इस पार तुम्हारे हाथों में, उस पार तुम्हारे हाथों में ।।  यदि मानुष ही मुझे जन्म मिले, तब तव चरणों का पुजारी बनूँ ।  मुझ पूजक की इक-इक रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में ।।  जब-जब संसार का बन्दी बन, दरबार तुम्हारे आऊँ मैं ।  हो मेरे पापों का निर्णय, सरकार तुम्हारे हाथों में । । मुझ में तुझमें है भेद यही, मैं नर हूँ तू नारायण है ।  मैं हूँ संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे हाथों में ।। https://youtu.be/pmPMb2y3dow

तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ

तुम्हीं ने अता की मुझे जिन्दगानी तेरी ही महिमा फिर भी न जानी कर्जदार तेरी दया का हूँ इतना जिसे मैं लौटाने के काबिल नहीं  तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ मैं आ तो गया हूँ, मगर जानता हूँ तेरे दर पे आने के, काबिल नहीं हूँ तेरी मेहरबानी का ये माना कि दाता हो, तुम इस जहाँ के मगर कैसे झोली फैलाऊँ मैं आ के जो पहले दिया है वो, कुछ कम नहीं है मैं ज्यादा उठाने के काबिल नहीं हूँ तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ तेरी मेहरबानी का जमाने की चाहत ने, खुद को मिटाया तेरा नाम हरगिज, जुबां पे न आया शर्मसार हूँ मैं, गुनाहगार हूँ मैं, तुझे मुँह दिखाने के, काबिल नहीं हूँ तेरी मेहरबानी का यहीं माँगता हूँ मैं, सिर को झुका लूँ तेरा दीद इक बार, जी भर के पा लूँ सिवा दिल के टुकड़े के, ऐ मेरे दाता कुछ भी चढ़ाने के, काबिल नहीं हूँ तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ आ तो गया हूँ, मगर जानता हूँ तेरे दर पे आने के, काबिल नहीं हूँ तेरी मेहरबानी का

हमने आँगन नहीं बुहारा, कैसे आयेंगे भगवान् ।

 हमने आँगन नहीं बुहारा, कैसे आयेंगे भगवान् । मन का मैल नहीं धोया तो, कैसे आयेंगे भगवान् ॥ हर कोने कल्मष-कषाय की, लगी हुई है ढेरी । नहीं ज्ञान की किरण कहीं है, हर कोठरी अँधेरी । आँगन चौबारा अँधियारा, कैसे आयेंगे भगवान् ॥ हृदय हमारा पिघल न पाया, जब देखा दुखियारा । किसी पन्थ भूले ने हमसे, पाया नहीं सहारा । सूखी है करुणा की धारा, कैसे आयेंगे भगवान् ॥ अन्तर के पट खोल देख लो, ईश्वर पास मिलेगा । हर प्राणी में ही परमेश्वर, का आभास मिलेगा । सच्चे मन से नहीं पुकारा, कैसे आयेंगे भगवान् ॥ निर्मल मन हो तो रघुनायक, शबरी के घर जाते । श्याम सूर की बाँह पकड़ते, शाग विदुर घर खाते । इस पर हमने नहीं विचारा, कैसे आयेंगे भगवान् ॥ हमने आँगन नहीं बुहारा, कैसे आयेंगे भगवान् । मन का मैल नहीं धोया तो, कैसे आयेंगे भगवान् ॥

ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य

 • "ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य • • बुद्धि का एक गुण - ऊहापोह (सिद्धांत रक्षा - वाद-विवाद) • • ऊहा द्वारा सिद्धान्त को समझाने और उसकी रक्षा करने का चमत्कार ! • ------------------------------- - पंडित सत्यानन्द वेदवागीश घटना भारत के स्वतन्त्र होने से पूर्व की है। पेशावर-आर्यसमाज का वार्षिकोत्सव था। एक दिन रात्रि के अधिवेशन में पं० बुद्धदेव जी विद्यालंकार का 'ईश्वर' विषय पर व्याख्यान था। उस समय अध्यक्षता कर रहे थे वहाँ के डिप्टी कमिश्नर, जो थे तो मुसलमान पर सुपठित होने के कारण उदार विचारों के थे।  पण्डित जी ने व्याख्यान में ईश्वर के गुणों का वर्णन करते हुए 'सर्वशक्तिमान्' का अर्थ बताया - “सर्वशक्तिमान् का यही अर्थ है कि ईश्वर अपने कर्म करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। अपने कर्मों के करने में वह किसी अन्य की सहायता नहीं लेता है। सृष्टि की रचना करना, सृष्टि का पालन करना, उसका संहार (प्रलय) करना और जीवों के कर्मों का निरीक्षण तथा तदनुसार फलप्रदान करना - ये जो ईश्वर के कर्म हैं, उनके करने में वह सम्पूर्ण शक्ति से युक्त है - सर्वशक्तिमान् है। किन्तु ...