संदेश

Updesh लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

संतान के रूप में कौन आती है ?

  संतान के रूप में कौन आती है ? एक बार अंत तक अवश्य पड़े... पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बंधी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते-नाते हैं सब मिलते है। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है, या इनसे कुछ लेना होता है। वैसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है। जिसे शास्त्रों में चार प्रकार का बताया गया है :- 1. ऋणानुबन्ध :- पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, तो वो आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो। 2. शत्रु पुत्र :- पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में संतान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा। हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रख कर खुश होगा। 3. उदासीन पुत्र :- इस प्रकार की 'सन्तान', ना तो माता-पित...

विपत्तियों से घबराएँ नहीं

 *********** *विपत्तियों से घबराएँ नहीं* *********               *महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे...पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें निराश नहीं होने देता था और वह था, श्रवण कुमार के पिता का श्राप...*               *दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था।*                *श्रवण कुमार के पिता ने ये श्राप दिया था कि ''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा!''*                *महाराज दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका अर्थ है कि मुझे इस जन्म में पुत्र तो अवश्य प्राप्त होगा। तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा।*                *"यानि यह श्राप महाराज दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया"*           ...

छोटा सा जीवन है, लगभग 80 वर्ष।

 अगर थोड़ा सा समय है तो जरूर पढ़ना  👉 छोटा सा जीवन है, लगभग 80 वर्ष। उसमें से आधा =40 वर्ष तो रात को बीत जाता है। उसका आधा=20 वर्ष बचपन और बुढ़ापे मे बीत जाता है। बचा 20 वर्ष। उसमें भी कभी योग, कभी वियोग, कभी पढ़ाई,कभी परीक्षा, नौकरी, व्यापार और अनेक चिन्ताएँ व्यक्ति को घेरे रखती हैँ।अब बचा ही कितना ? 8/10 वर्ष। उसमें भी हम शान्ति से नहीं जी सकते ? यदि हम थोड़ी सी सम्पत्ति के लिए झगड़ा करें, और फिर भी सारी सम्पत्ति यहीं छोड़ जाएँ,  तो इतना मूल्यवान मनुष्य जीवन प्राप्त करने का क्या लाभ हुआ? स्वयं विचार कीजिये :- इतना कुछ होते हुए भी, 1- शब्दकोश में असंख्य शब्द होते हुए भी... 👍मौन होना सब से बेहतर है।  2- दुनिया में हजारों रंग होते हुए भी... 👍सफेद रंग सब से बेहतर है।  3- खाने के लिए दुनिया भर की चीजें होते हुए भी... 👍उपवास शरीर के लिए सबसे बेहतर है।  4- देखने के लिए इतना कुछ होते हुए भी... 👍बंद आँखों से भीतर देखना सबसे बेहतर है।  5- सलाह देने वाले लोगों के होते हुए भी... 👍अपनी आत्मा की आवाज सुनना सबसे बेहतर है।  6- जीवन में हजारों प्रलोभन होते...

स्वाध्याय

 स्वाध्याय  स्वाध्याय का बड़ा महत्त्व है। स्वाध्याय=स्व+अध्याय (अर्थात् अपना अध्ययन करना)इसके दो अर्थ हैं―एक तो वेद, उपनिषद् आदि ग्रन्थों का नित्यप्रति अध्ययन और गायत्री तथा ओम् का ध्यानपूर्वक तप; और दूसरा अर्थ यह है कि साधक प्रतिदिन अपना अध्ययन करे, अपने-आपको पढ़े कि मेरे सूक्ष्म शरीर की पुस्तक के पन्नों पर क्या लिखा जा रहा है। मानव स्थूल शरीर के अतिरिक्त एक सूक्ष्म शरीर भी है। यह स्थूल शरीर तो इसी जन्म में मिला और इस जन्म में छिन जाएगा, परन्तु सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मान्तर से हमारे साथ है। पिछले अनेक जन्मों में जो भी अच्छे-बुरे कर्म या संकल्प हम करते रहे हैं, उन सबका पूरा ब्यौरा (रिकॉर्ड) इस सूक्ष्म शरीर पर अंकित है, और उसी के अनुसार हम भोग भोगते हैं। इस जन्म में जो भी कर्म हम कर रहे हैं , उनका रिकॉर्ड भी इसी सूक्ष्म शरीर में रखा जा रहा है।  साधक को प्रतिदिन यह देखना है कि मेरे सूक्ष्म शरीर पर आज अच्छी बातें लिखी गई हैं या बुरी? वे मुझे मानवता से नीचे गिराने वाली हैं अथवा मानव ही रखने वाली हैं या मानवता से ऊपर उठाने वाली हैं? यदि गिराने वाली हैं तो सावधान हो जाओ, सँभलो और न...

प्रश्न―यह #नमस्ते कहाँ से चली और इसका अर्थ क्या है?

🙏   प्रश्न―यह #नमस्ते कहाँ से चली और इसका अर्थ क्या है? ======================================    उत्तर―सृष्टि के आदि से लेकर महाभारत पर्यन्त सब मनुष्य परस्पर में नमस्ते ही करते थे। उनके पश्चात् जब अनेक मत मतान्तर और अनेक मजहब दुनियाँ में फैले, तो उधर सबने अलग-२ शब्द नियत किये। किसी ने 'गुड मार्निंग' 'गुड नाइट' गुडवाई किसी ने 'अस्लाम अलैकुल' 'वालेकम सलाम' 'आदाब अर्ज' आदि-२ अनेक शब्द विधर्मियों और विदेशियों ने कल्पित किए। जय शिव, जय हरी, जय गोविन्द, जय राधेश्याम, जय राम जी, जय कृष्ण जी, प्रणाम, आदि अनेक प्रयोग जारी किये। महाभारत से पहले भू-मण्डल पर आर्य लोगों का अखण्ड राज्य था लोग वैदिक धर्मी थे। परस्पर में नमस्ते ही किया करते थे। अब ऋषि दयानन्द की कृपा से लोग प्राचीन वैदिक सिद्धान्त को पुनः समझने लग गये हैं और परस्पर में नमस्ते करने लगे हैं। नमस्ते का अर्थ है―'मैं तुम्हारा मान्य करता हूँ, आदर करता हूँ।'    प्रश्न―क्या वेदों में नमस्ते करना लिखा है? और जय रामजी की, जय श्री कृष्ण की करने में नुकसान ही क्या है?    उत्तर―वेदों में ही क्या बा...

शिक्षा से बड़ा तजुर्बा है।

 एक राजा की बेटी की शादी होनी थी। बेटी की यह शर्त थी कि जो भी 20 तक की गिनती सुनाएगा, वही राजकुमारी का पति बनेगा। गिनती ऐसी होनी चाहिए जिसमें सारा संसार समा जाए। जो यह गिनती नहीं सुना सकेगा, उसे 20 कोड़े खाने पड़ेंगे। यह शर्त केवल राजाओं के लिए ही थी। अब एक तरफ राजकुमारी का वरण और दूसरी तरफ कोड़े! एक-एक करके राजा-महाराजा आए। राजा ने दावत का आयोजन भी किया। मिठाई और विभिन्न पकवान तैयार किए गए। पहले सभी दावत का आनंद लेते हैं, फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है। एक से बढ़कर एक राजा-महाराजा आते हैं। सभी गिनती सुनाते हैं, जो उन्होंने पढ़ी हुई थी, लेकिन कोई भी ऐसी गिनती नहीं सुना पाया जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके। अब जो भी आता, कोड़े खाकर चला जाता। कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए। उनका कहना था कि गिनती तो गिनती होती है, राजकुमारी पागल हो गई है। यह केवल हम सबको पिटवा कर मज़े लूट रही है। यह सब नज़ारा देखकर एक हलवाई हंसने लगा। वह कहता है, "डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक की गिनती नहीं आती!" यह सुनकर सभी राजा उसे दंड देने के लिए कहने लगे। राजा ने उससे पूछा, "क्या तुम गिनती जा...

क्या ईश्वर अवतार लेता है ?

 *क्या ईश्वर अवतार लेता है ?* यदि ईश्वर जन्म या अवतार लेता है, तो उसे अविनाशी, नित्य, अजन्मा, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, यह सब कहना छोड़ना पड़ेगा | परमात्मा के इन गुणों को त्यागना पड़ेगा | # यदि ईश्वर अवतार लेता है अथवा हमारे मध्य आता है, तो इसका तात्पर्य हुआ कि आने से पूर्व वह हमारे मध्य उपस्थित नहीं था | ईश्वर तो अनादि व नित्य है । ईश्वर तो हमारे मध्य सदा से है, और उसे अवतार लेकर आने की आवश्यकता ही क्यों है ? उसका तो निराकार स्वरूप ही सर्वशक्तिशाली है ।  # कहते हैं कि ईश्वर दुष्टों के नाश के लिए अवतार लेते हैं, तो यह भी विचारणीय है कि जिस परमेश्वर के द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड संचालित होता है, जिसके द्वारा निर्मित लाखों सूर्य (तारा) नियमित कार्य कर रहे हैं, अथाह जल भण्डार युक्त बड़ी -बडी़ नदियां प्रवाहित हो रही है, जो कितने ही समुद्रों का स्वामी है, अनन्त सृष्टि, अनन्त कोटि के मानवों व प्राणियों का स्वामी है, जिसके द्वारा सृष्टि की रचना, रक्षा और प्रलय किया जाता है | क्या उस शक्तिशाली ईश्वर को एक छोटे से काम के लिए जन्म लेना पड़ेगा ? ऐसे छोटे से कार्यों के लिए उसे मनुष्...

ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य

 • "ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य • • बुद्धि का एक गुण - ऊहापोह (सिद्धांत रक्षा - वाद-विवाद) • • ऊहा द्वारा सिद्धान्त को समझाने और उसकी रक्षा करने का चमत्कार ! • ------------------------------- - पंडित सत्यानन्द वेदवागीश घटना भारत के स्वतन्त्र होने से पूर्व की है। पेशावर-आर्यसमाज का वार्षिकोत्सव था। एक दिन रात्रि के अधिवेशन में पं० बुद्धदेव जी विद्यालंकार का 'ईश्वर' विषय पर व्याख्यान था। उस समय अध्यक्षता कर रहे थे वहाँ के डिप्टी कमिश्नर, जो थे तो मुसलमान पर सुपठित होने के कारण उदार विचारों के थे।  पण्डित जी ने व्याख्यान में ईश्वर के गुणों का वर्णन करते हुए 'सर्वशक्तिमान्' का अर्थ बताया - “सर्वशक्तिमान् का यही अर्थ है कि ईश्वर अपने कर्म करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। अपने कर्मों के करने में वह किसी अन्य की सहायता नहीं लेता है। सृष्टि की रचना करना, सृष्टि का पालन करना, उसका संहार (प्रलय) करना और जीवों के कर्मों का निरीक्षण तथा तदनुसार फलप्रदान करना - ये जो ईश्वर के कर्म हैं, उनके करने में वह सम्पूर्ण शक्ति से युक्त है - सर्वशक्तिमान् है। किन्तु ...

ओ३म् का जाप सर्वश्रेष्ठ।

 ओ३म् ओ३म् का जाप सर्वश्रेष्ठ। ==============    ओ३म् का जाप स्मरण शक्ति को तीव्र करता है,इसलिए वेदाध्ययन में मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का प्रयोग किया जाता है।     मनुस्मृति में आया है कि ब्रह्मचारी को मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का उच्चारण करना चाहिए।      क्योंकि आदि में ओ३म् शब्द का उच्चारण न करने से अध्ययन धीरे धीरे नष्ट हो जाता है तथा अन्त में ओ३म् शब्द न कहने से वह स्थिर नहीं रहता है। २/७४ ।।      कठोपनिषद में नचिकेता की कथा आती है।नचिकेता ने यम ऋषि से पूछा- हे ऋषि,मुझे यह बताइये कि संसार में सार वस्तु क्या है?      इस पर ऋषि ने उत्तर दिया,सब वेद जिस नाम के संबंध में वर्णन करते हैं,सभी तपस्वी जिसके विषय में कहते हैं,जिसकी प्राप्ति की इच्छा करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं,उस नाम के संबंध में मैं तुझे संक्षेप में बताता हूं-       वह ओ३म् नाम(शब्द) ही परमात्मा का श्रेष्ठतम नाम है।      यजुर्वेद में आया है कि मृत्यु को जीतने और मोक्ष को प्राप्त करने के लिए ओ...

वेदों के प्रश्नोत्तर सुनना,तुमको आज बताता हूँ। सुन करके जीवन में उतारो,वेद की बात बताता हूँ।

चित्र
               चतुर्वेद प्रश्नोत्तरी वेदों के प्रश्नोत्तर सुनना,तुमको आज बताता हूँ। सुन करके जीवन में उतारो,वेद की बात बताता हूँ। ।टेक।।  आदि सृष्टि में ईश्वर ने वेदों का हमको ज्ञान दिया।  क्या है करना क्या ना करना,प्रभु ने यह आदेश दिया। महाकवि का महाकाव्य है,वेद की बात बताता हूँ।।१।।  "ऋग्वेद " कौन है और कौन सा है,नाम तुम्हारा क्या बोलो। तुमको जानू तृप्त करूँ मैं,धन आदि से तुम बोलो।  सुखाभिलाषी श्रेष्ठवीर हूँ,वेद की बात बताता हूँ।।२।।  कर्म फल ईश्वर देता है,जीवमात्र है फल भोक्ता।  इस जग का आधार बताओ,कारण कार्य क्या होता। निमित्त कारण प्रभु को माना,वेद की बात बताता हूँ।।३।।  जग का भी आधार वही है,जग में वह आच्छादित है। पृथिवी द्यौ भी उसने बनाए,वह जग में अबाधित है। परमेश्वर ही परम पूज्य है वेद की बात बताता हूँ।।४।।  कौन रोकता पढ़ने से है ,विद्यार्थी से दूर रखे।  जो शिक्षक अच्छा है पढ़ाता,उनके पास उनको रखे। बनके विवेकी शिक्षित करना,वेद की बात बताता हूँ ।।५।।  अविनाशी से अविनाशी भी उसी ब्रह्म को है मान...

उपनिषद् में ईश्वर का विवरण

चित्र
 *उपनिषद् में ईश्वर का विवरण* "यद्वाचाऽनभ्युदितं, येन वागभ्युद्यते । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि, नेदं यदिदमुपासते ।।"          (केन० १/४)         जो वाणी द्वारा प्रकाशित नहीं होता, जिससे वाणी का प्रकाश होता है, उसी को तू ब्रह्म जान । जिसका वाणी से सेवन किया जाता जाता है, वह ब्रह्म नहीं है । "यन्मनसा न मनुते, येनाहुर्मनो मतम् । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि, नेदं यदिदमुपासते ।।"            (केन० १/५)           जिसका मन से मनन नहीं किया जाता, जिसकी शक्ति से मन मनन करता है, उसी को तू ब्रह्म जान । जिसका मन से मनन किया जाता है, वह ब्रह्म नहीं है । "यच्चक्षुषा न पश्यति, येन चक्षूंषि पश्यन्ति । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि, नेदं यदिदमुपासते ।।"           (केन. १/६)           जो आँख से नहीं देखा जाता, जिसकी शक्ति से आँख देखती है, उसी को तू ब्रह्म जान । जो आँख से देखा जाता है, वह ब्रह्म नहीं है । "यच्छ्रोत्रेण न श्रृणोति, येन श्रोत्रमिदं श्रुतम् । तदेव ब्रह...

ईश्वर का आश्रय ही सबसे बड़ा आश्रय

 *ईश्वर का आश्रय ही सबसे बड़ा आश्रय* # *ईश्वर* कहता है, "अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनं न मृत्यवेऽव तस्थे कदा चन । सोममिन्मा सुन्वतो याचता वसु न मे पूरवः सख्ये रिषाथन ।।"               (ऋ० १०/४८/५)               मैं परमैश्वर्यवान् सूर्य के सदृश सब जगत् का प्रकाश हूँ । कभी पराजय को प्राप्त नहीं होता और न कभी मृत्यु को प्राप्त होता हूँ । मैं ही जगद्रूप धन का निर्माता हूँ । सब जगत की उत्पत्ति करने वाले मुझ ही को जानो ।  हे जीवों ! ऐश्वर्य-प्राप्ति के यत्न करते हुए तुम लोग विज्ञानादि धन को मुझसे माँगो और तुम लोग मेरी मित्रता से अलग मत होओ । # *कठोपनिषद्* में यमाचार्य ने कहा है, "एतदालम्बनं श्रेष्ठमेतदालम्बनं परम् । एतदालम्बनं ज्ञात्वा ब्रह्मलोके महीयते ।।"               (कठ० २/१७)               यह आश्रय श्रेष्ठ और सर्वोपरि है । इस आलम्बन को जानकर मनुष्य ब्रह्मलोक में आनन्दित होता है । # *रहीम* सुन्दर शब्दों में कहते हैं,  "अमरबेलि बिन मूल क...

रामसेतु निर्माण:

चित्र
*रामसेतु निर्माण:* क्या इसमें कहीं तैरने वाले पत्थरों का जिक्र आया? नल: मैं महासागरपर पुल बाँधनेमें समर्थ हूँ, अतः सब वानर आज ही पुल बाँधनेका कार्य आरम्भ कर दें' ॥ ५३ ॥ तब भगवान् श्रीरामके भेजनेसे लाखों बड़े-बड़े वानर हर्ष और उत्साहमें भरकर सब ओर उछलते हुए गये और बड़े-बड़े जंगलों में घुस गये ॥ ५४ ॥ वे पर्वतके समान विशालकाय वानरशिरोमणि पर्वतशिखरों और वृक्षों को तोड़ देते और उन्हें समुद्रnतक खींच लाते थे ॥ ५५ वे साल, अश्वकर्ण, धव, बाँस, कुटज, अर्जुन, ताल, तिलक, तिनिश, बेल, छितवन, खिले हुए कनेर, आम और अशोक आदि वृक्षोंसे समुद्रको पाटने लगे ॥ ५६-५७ ॥ वे श्रेष्ठ वानर वहाँ के वृक्षों को जड़से उखाड़ लाते या जड़ के ऊपर से भी तोड़ लाते थे। इन्द्रध्वजके समान ऊँचे- ऊँचे वृक्षोंको उठाये लिये चले आते थे ॥ ५८ ॥ ताड़ों, अनारकी झाड़ियों, नारियल और बहेड़ेके वृक्षों, करीर, बकुल तथा नीमको भी इधर-उधरसे तोड़-तोड़कर लाने लगे ॥ ५९ ॥ महाकाय महाबली वानर हाथीके समान बड़ी-बड़ी शिलाओं और पर्वतोंको उखाड़कर यन्त्रों (विभित्र साधनों) द्वारा समुद्रतटपर से आते थे ॥ ६० ॥ शिलाखण्डोंको फेंकनेसे समुद्रका जल सहसा आकाशमे...

Best Pandit in Gaya, Purohit in Gaya | all puja in Gaya

चित्र
  Welcome to aryasamajmandirpandit.in    Trusted Partner for Rituals in Gaya At aryasamajmandirpandit,  we deeply  understand the importance of performing traditional rituals with utmost devotion and precision. Our dedicated services ensure that your religious needs are met with the highest standards of care and authenticity. Whether you are looking for Hindi pandit in Gaya, our experienced and knowledgeable team is here to assist you with all your spiritual and ritualistic needs. Our Comprehensive Services:   Pandit in Gaya We provide experienced and knowledgeable pandits in Gaya to conduct a variety of rituals. Our pandits, fluent in  Hindi, are well-versed in Vedic practices and ensure that every ceremony is performed with the utmost respect and adherence to tradition. Whether you need a Hindi pandit in Gaya. we are here to meet your requirements. Death Anniversary Rituals in Gaya Honoring the memory of your loved ones on their death anniversary in ...