यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य

 • "ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य •


• बुद्धि का एक गुण - ऊहापोह (सिद्धांत रक्षा - वाद-विवाद) •


• ऊहा द्वारा सिद्धान्त को समझाने और उसकी रक्षा करने का चमत्कार ! •

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- पंडित सत्यानन्द वेदवागीश


घटना भारत के स्वतन्त्र होने से पूर्व की है। पेशावर-आर्यसमाज का वार्षिकोत्सव था। एक दिन रात्रि के अधिवेशन में पं० बुद्धदेव जी विद्यालंकार का 'ईश्वर' विषय पर व्याख्यान था। उस समय अध्यक्षता कर रहे थे वहाँ के डिप्टी कमिश्नर, जो थे तो मुसलमान पर सुपठित होने के कारण उदार विचारों के थे। 


पण्डित जी ने व्याख्यान में ईश्वर के गुणों का वर्णन करते हुए 'सर्वशक्तिमान्' का अर्थ बताया - “सर्वशक्तिमान् का यही अर्थ है कि ईश्वर अपने कर्म करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। अपने कर्मों के करने में वह किसी अन्य की सहायता नहीं लेता है। सृष्टि की रचना करना, सृष्टि का पालन करना, उसका संहार (प्रलय) करना और जीवों के कर्मों का निरीक्षण तथा तदनुसार फलप्रदान करना - ये जो ईश्वर के कर्म हैं, उनके करने में वह सम्पूर्ण शक्ति से युक्त है - सर्वशक्तिमान् है। किन्तु 'सर्वशक्तिमान्' का यह अर्थ कदापि नहीं है, कि वह जो चाहे सो कर दे। बिना किसी सामग्री के कुछ बना दे। उसके भी कुछ नियम हैं। उनके अनुसार ही वह कार्य करता है, उनके विपरीत नहीं। कभी वह ऊटपटांग काम नहीं करता है।"


ध्यान से सुन रहे डि० कमिश्नर ने अनुभव किया कि पण्डित जी के इस प्रवचन से तो कुरान के "सृष्टि से पहले खुदा के सिवाय कुछ नहीं था। खुदा ने 'कुन' (हो जा) कहा और नेश्त में से अश्त हो गया = नास्ति में से अस्तित्व हो गया = अभाव में से भाव हो गया" - इस सिद्धान्त का खण्डन हो रहा है। अतः बीच में ही बोले - "पण्डित साहब ! खुदा तो वही हो सकता है, जो जैसा चाहे सो कर सके। खुदा पर भी कोई नियम लागू हो तो वह खुदा ही क्या?" 


पण्डित जी ने समझाने का प्रयास करते हुए कहा - "ईश्वर भी नियमानुसार व्यवस्थानुसार कार्य करता है। वह असम्भव कार्य नहीं करता।"  


डि० कमिश्नर - "हाँ, ईश्वर असम्भव को भी सम्भव कर सकता है, वह सब कुछ कर सकता है"। 


पण्डित जी - "क्या खुदा अपने आप को मार सकता है? क्या वह अपने आपको दुराचारी, पापी, मलिन बना सकता है? या फिर क्या वह ऐसा कोई पत्थर बना सकता है, जिसे वह स्वयं न उठा सके ?” 


डि० कमिश्नर - "पण्डित जी, ये तो बेसिर पैर की बातें हैं। खुदा वास्तव में सब कुछ कर सकता है।"


तुरन्त पण्डित जी की ऊहा-प्रतिभा जागृत हुई। उन्होंने पूछा - "अच्छा, कमिश्नर साहब ! खुदा का वजूद (अस्तित्व) कहाँ तक है?" 


डि० कमिश्नर - "उसका वजूद सब जगह है, वह हरजाँ मौजूद है, कोई जगह उसके बिना नहीं है।" 


पण्डित जी - "क्या वह हिन्दुस्तान से या एशिया से बाहर भी है?" 


डि० कमिश्नर - "पण्डित साहब ! आप कैसी मखौल की बात कर रहे हैं ! आप भी तो ईश्वर को सर्वव्यापक मानते हैं। वास्तव में खुदा संसार में सब जगह है। दूर से दूर तक है। He is omnipresent." 


पण्डित जी - "कहीं तो खुदा के वजूद की सीमा होगी ?" 


डि० कमिश्नर - "नहीं, उसकी कोई हदो हदूद (सीमा) नहीं हैं। वह असीम है, अनन्त है - He is infinite."


इस प्रकार ईश्वर की अनन्तता-सर्वव्यापकता को स्वीकार करवा के पण्डित जी ने प्रसङ्ग बदलते हुए पूछा - "कमिश्नर साहब ! यदि में इस समय ऐसा व्याख्यान दे दूँ, जिससे साम्प्रदायिक दंगा भड़कने की आशंका हो जाय, तो आप क्या करेंगे?"


डि० कमिश्नर (हंसते हुए) - "ऐसा करने पर मैं आपको तुरन्त पेशावर जिले की सीमा से बाहर निकलवा दूंगा।" 


अब पण्डित जी की बारी थी - "कमिश्नर साहब ! आप तो मुझे अपनी  (अपने जिले की) सीमा से बाहर निकाल सकते हैं, पर क्या खुदा अपनी सीमा से मुझे बाहर निकाल सकता है, चाहे मैं कितना ही पाप करूँ? और यदि नहीं, तो यह कैसे कि वह सब कुछ कर सकता है ?" 


डि० कमिश्नर विचारवान् व्यक्ति थे। तुरन्त समझ गये कि जब खुदा की कोई सीमा ही नहीं है, तो वह किसी को अपनी सीमा से बाहर कैसे निकाल सकता है? अतः प्रसन्न होकर पण्डित जी को उत्तम तर्क द्वारा ईश्वर की अनन्तता और सर्वशक्तिमत्ता समझाने का धन्यवाद दिया।


यह है ऊहा द्वारा सिद्धान्त को समझाने और उसकी रक्षा करने का चमत्कार !


[स्रोत : बुद्धि निधि:, पृष्ठ 36-37, प्रथम संस्करण, वि०सं० 2055, प्रस्तुतकर्ता : आचार्य श्री प्रेम आर्य 


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ईश्वर सर्वशक्तिमान् है" का वास्तविक तात्पर्य

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