यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

दीपावली के मन्त्र

 दीपावली के मन्त्र

गृहकृत्य -* यतः दीपावली का पर्व वर्ष भर में घरों की लिपाई पुताई आदि संस्कार के लिए विशेषतः उद्दिष्ट है। इसलिए स्व सुविधा के अनुसार दीवाली से पूर्व दिन के सायंकाल तक प्रचलित प्रथानुसार यह सब कार्य समाप्त हो जाना चाहिए। कार्तिक अमावस्या के दिन प्रातःकाल नैत्यिक कर्मों से निवृत्त होकर यज्ञशाला व आवास गृह के तल का गोमय से पुनः लेपन करके स्वदेशीय नवीन शुद्ध वस्त्र परिधानपूर्वक सामान्य व बृहद होम करके निम्नलिखित मन्त्रों से स्थालीपाक से ३१ विशेष आहुतियां दी जायें। स्थालीपाक नवागत श्रावणी शस्य अन्न से बनाया गया पायस (खीर) हो। हवन के अन्य साकल्य में लाजा (नवीन धानों की खील) विशेषतः मिलाई जायें तथा नई शस्य (फसले) जैसे-धान, यव, तिल, बताशा, मूंग इत्यादि मिलाकर आहुतियां देंवें।


*ओ३म् शतायुधाय शतवीर्याय शतोतयेऽभिमातिषाहे।* 

*शतं यो नः शरदो अजीजादिन्द्रो नेषदति दुरितानि विश्वा स्वाहा।।१।।*


*ओ३म् ये चत्वारः पथयो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी वियन्ति।*

*तेषां यो आज्यानिमजीजिमावहास्तस्मै नो देवाः परिदत्तेह सर्वं स्वाहा।।२।।*


*ओ३म् ग्रीष्मोहेमन्त उतनोवसन्तः शरद्वर्षाः सुवितन्नो अस्तु।*

*तेषामृतूनां शतशारदानां निवात एषामभये स्याम स्वाहा।।३।।*


*ओ३म् इद्वत्सराय परिवत्सराय संवत्सराय कृणुता बृहन्नमः।* 

*तेषांवयं सुमतौ यज्ञियानां ज्योग् जीता अहताः स्याम स्वाहा।।४।।*


*ओ३म् पृथिवी द्यौ प्रदिशो दिशो यस्मै द्युभिरावृताः।*

*तमिहेन्द्रमुपह्वये शिवा नः सन्तु हेतयः स्वाहा।।५।।*


*ओ३म् यन्मे किञ्चिदुपेप्सितमस्मिन् कर्मणि वृत्रहन्।* 

*तन्मे सर्वं समृध्यतां जीवतः शरदः शतं स्वाहा।।६।।*


*ओ३म् सम्पत्तिर्भूमिर्वृष्टिज्यैष्ठ्यँ श्रेष्ठ्यँ श्रीः प्रजामिहावतु स्वाहा। इदमिन्द्राय - इदन्न मम।।७।।*


*ओ३म् यस्याभावे वैदिकलौकिकानां भूतिर्भवति कर्मणाम्।*

*इन्द्रपत्नीमुपह्वये सीतां सा मे त्वनपायिनी भूयात् कर्मणि कर्मणि स्वाहा।। इदमिन्द्रपत्न्यै - इदन्न मम।।८।।*


*ओ३म् अश्वावती गोमती सूनृतावती बिभर्ति या प्राणभृतामतन्द्रिता।* 

*खलमालिनीमुर्वरामस्मिन् कर्मण्युपह्वये ध्रुवाँ सा मे त्वनपायिनी भूयात् स्वाहा ।। इदं सीतायै - इदन्न मम।।९।।*


*ओ३म् सीतायै स्वाहा।।१०।।*


*ओ३म् प्रजायै स्वाहा।।११।।*


*ओ३म् शमायै स्वाहा।।१२।।*


*ओ३म् भूत्यै स्वाहा।। १३ ।।*


*ओ३म् व्रीहयश्च में यवाश्च मे माषाश्च में तिलाश्च मे मुद्‌गाश्च मे खल्वाश्च में प्रियङ्गवश्च मेऽणवश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्तां स्वाहा।।१४।।*


*ओ३म् वाजो नः सप्त प्रदिशश्चतस्त्रो वा परावतः।* 

*वाजो नो विश्वैर्देवैर्धनसाताविहावतु स्वाहा।।१५।।* 


*ओ३म् वाजो नो अद्य प्रसुवाति दानं वाजो देवां ऋतुभिः कल्पयाति।*

*वाजो हि मा सर्ववीरं जजान विश्वा आशा वाजपतिर्जयेयं स्वाहा।।१६।।*


*ओ३म् वाजः पुरस्तादुत मध्यतो नो वाजो देवान् हविषा वर्धयाति।*

*वाजो हि मा सर्ववीरं चकार सर्वा आशा वाजपतिर्भवेयं स्वाहा।।१७।।*


*ओ३म् सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा वि तन्वते पृथक्।* 

*धीरा देवेषु सुम्नयौ स्वाहा।।१८।।*


*ओ३म् युनक्त सीरा वि युगा तनोत कृते योनौ वपतेह बीजम्।*

*विराजः श्नुष्टिः सभरा असन्नो नेदीय इत्सृण्यः पक्वमा यवन् स्वाहा।।१९।।*


*ओ३म् लाङ्गलं पवीरवत् सुशीमं सोमसत्सरु।* *उदिद्वपतु गामविं प्रस्थावद्रथवाहनं पीवरीं च प्रफर्व्यम् स्वाहा।।२०।।*


*ओ३म् इन्द्रः सीतां नि गृह्णातु तां पूषाभि रक्षतु।* *सा नः पयस्वती दुहामुत्तारामुत्तरां समाम् स्वाहा।।२१।।*


*ओ३म् शुनं सुफाला वि तुदन्तु भूमिं शुनं कीनाशा अनु यन्तु वाहान्।*

*शुनासीरा हविषा तोशमाना सुपिप्पला ओषधीः कर्तमस्मै स्वाहा।।२२।।*


*ओ३म् शुनं वाहाः शुनं नरः शुनं कृषतु लाङ्गलम्।*

*शुनं वरत्रा बध्यन्तां शुनमष्ट्रामुदिङ्गय स्वाहा।।२३।।*


*ओ३म् शुनासीरेह स्म मे जुषेथाम्।*

*यद्दिवि चक्रथुः पयस्तेनेमामुप सिञ्चतम् स्वाहा।।२४।।*


*ओ३म् सीते वन्दामहे त्वार्वाची सुभगे भव।*

*यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भुवः स्वाहा ।।२५।।*


*ओ३म् ‌घृतेन सीता मधुना समक्ता विश्वैर्देवैरनुमता मरुद्भिः।* 

*सा नः सीते पयसाभ्याववृत्स्वोर्जस्वती घृतवत्पिन्वमाना स्वाहा।।२६।।* 


*ओ३म् इन्द्राग्निभ्यां स्वाहा।।*

*इदमिन्द्राग्निभ्यां-इदन्न मम।।२७।।*


*ओ३म् विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा।।*

*इदं विश्वेभ्यो देवेभ्य-इदन्न मम।।२८।।*

*ओ३म् द्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा।।*

*इदं द्यावापृथिवीभ्याम्-इदन्न मम।।२९।।*


*ओ३म् स्विष्टमग्ने अभि तत्पृणीहि विश्वाँश्च देवः पृतना अभिष्यक्।*

*सुगन्नु पन्थां प्रदिशन्न एहि ज्योतिष्मध्ये ह्यजरं न आयुः स्वाहा।।३०।।*


*ओ३म् यदस्य कर्मणोऽत्यरीरिचं यद्वा न्यूनमिहाकरम्। अग्निष्टत्स्विष्टकृद्विद्यात्सर्वं स्विष्टं सुहुतं करोतु मे। अग्नये स्विष्टकृते सुहुतहुते सर्वप्रायश्चित्ताहुतीनां कामानां समर्द्धयित्रे सर्वान्नः कामान्त्समर्द्धय स्वाहा।। इदमग्नये स्विष्टकृते इदन्न मम।।३१।।*


पूर्णाहुति के पश्चात् खीलों और मिष्टान्त्र के (बताशे आदि) हुतशेष को यज्ञमण्डप में उपस्थित जनों में वितरण करके भक्षण किया जाये ।


अपराह्न में प्रचलित प्रथानुसार इष्टमित्रों को मिष्टान्न के उपायन (भेंट) दिये जायें। सायंकाल के समय आवास गृहों को सुचारुरूपेण सजाकर स्वसामर्थ्यानुसार दीपमाला की जायें।


ओ३म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।


*शुभ दीपावली!!!*


आचार्य प्रेम आर्य 

गया बिहार 

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