यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

अन्त्येष्टि संस्कार | Antyeshti Sanskar

 


अंत्येष्टि संस्कार के साथ विभागीय आत्माओं को चिह्नित करें। अंत्येष्टि संस्कार को नर्मदा, पुरुषमेध या पुरुषयाग के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र संस्कार को मृत्यु के बाद आयोजित किया जाता है, जो विभिन्न प्रथाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अग्नि द्वारा दाह करके यह शीघ्रता से मृत शरीर के पांच तत्वों को उनकी मूल स्थिति में पुनरुद्धार करता है, जो उनके आगामी जीवन की यात्रा का प्रतीक होता है। उनकी अनन्त शांति और मुक्ति तथा उनकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।


Mark the solemn departure of departed souls with the Antyeshti Sanskar, also known as Narmada, Purushamedha, or Purushayag. This sacred ceremony, performed after death, encompasses the Vedic funeral rite, considered the most superior among various practices worldwide. Through the cremation by fire, it swiftly restores the five elements of the deceased body to their original state, symbolizing their journey to the afterlife. Seek divine blessings for their eternal peace and liberation, offering prayers for their spiritual transcendence.




अन्त्येष्टि कर्म उसको कहते हैं जो शरीर के अन्त का संस्कार है। इसके आगे उस शरीर के लिए कोई भी अन्य संस्कार नहीं है। इसी को नरमेध, पुरुषमेध, नरयाग, पुरुषयाग कहते हैं। 

             यह कल्पना कि मरने के बाद  आत्मा यमलोक को जाता है- एक मिथ्या कल्पना है। इस कल्पना का आधार गरुड़ पुराण आदि में यमलोक का वर्णन है, परन्तु यह बात वेदों के यम शब्द को न समझने के कारण उत्पन्न हुई है। वेदों में यम शब्द का प्रयोग अनेक पदार्थों के लिए हुआ है। जिसे न समझ कर यम का अर्थ यमलोक कर दिया गया है। यम का एक अर्थ है- नियमन करने वाला, अनुशासन में रखने वाला। 

            आत्मा, मरने के बाद  वाय्वालय, अर्थात् अंतरिक्ष का जो यह पोल है, उसमें जाता है और यथा समय अपने कर्मों के अनुसार जन्म को ग्रहण करता है।

             विश्व भर के लोग मरने पर मृतक शरीर को पृथ्वी, जल, अग्नि व वायु इन तत्त्वों मे से किसी एक की भेंट कर देते हैं। जो लोग गाड़ते हैं वे पृथ्वी को, जो जल-प्रवाह कर देते हैं वे जल को, जो दाह-कर्म कर देते हैं वे अग्नि को और जो शव को खुले में छोड़ देते हैं वे मृतक को वायु को भेंट कर देते हैं। सोचने की बात यह है कि इन सब में से वैज्ञानिक विधि कौन सी है। 

            यूरोप में शव दाह कानून- 1902 में इंग्लैंड में पहले-पहले शवदाह विधेयक पास हुआ। इसके पास होने के बावजूद शवदाह के लिए इने-गिने व्यक्ति ही तैयार होते थे। इस दिशा में विशेष प्रगति द्वितीय विश्वयुद्ध के समय में हुई। मरने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि दफनाने की तंगी अनुभव होने लगी क्योंकि इनके लिए भूमि पर्याप्त नहीं थी। इंग्लैंड में यह अनुभव किया जाने लगा कि मुर्दों को भूमि में गाड़ना भूमि का दुरुपयोग करना था। इससे दाह करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलने लगा। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से शव गृहों में जलाये जाने वाले मृतकों की संख्या 3 लाख प्रतिवर्ष बढ़ने लगी। इसका अर्थ यह है कि इंग्लैंड में जितने व्यक्ति मरते थे उनमें से आधे जलाए जाने लगे। इस बीच दाह-गृहों की संख्या 200 तक पहुंच गई। 
     
          इंग्लैंड में मृतकों के दाह-कर्म के देखा-देखी यूरोप के अन्य देशों में शव-दाह का अनुकरण होने लगा। स्कैनिंग नेवियन देशों, अस्ट्रेलिया,  न्यूजीलैंड, में 30 प्रतिशत मुर्दे जलाये जाने लगे। अमरीका में शव-दाह का सूत्रपात 1876में हुआ । अमरीका की शव-दाह संस्था के आंकडों के अनुसार 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अमरीका में 230 शव-दाह-गृह बन चुके थे और 1970 में एक वर्ष में 88000 मृतकों का दाह संस्कार  हुआ था ।
यूरोप तथा अमरीका में 1973 से प्रत्येक देश में अपनी-अपनी राष्ट्रीय शव-दाह संस्थाएं बन गईं और वे आपस में विचार विनिमय कर सकें इस आशय से एक अन्तरराष्ट्रीय शव दाह संगठन की भी स्थापना हो गई,  जिसका मुख्य कार्यालय लंदन में है। यह संगठन त्रिवार्षिक सेमिनार आयोजित करता रहता है, जिनमें शव-दाह को प्रोत्साहन देने के कार्यक्रमों पर विचार होता है। 

मुर्दों को गाड़ने तथा जलाने पर तुलना 
       (1) मृत-शरीर को जलाने से भूमि बहुत कम खर्च होती है। कब्रों से स्थान-स्थान पर बहुत सी भूमि घिर जाती है। 
       (2) कब्रिस्तान के कारण बहुत से लोग वायुमंडल को दूषित कर देते हैं। वायु के दूषित होने से वह फैल कर समाज में रोग फैलाने का कारण बनती है। मुर्दों को जला देने से यह नहीं होता। 
       (3) जो जल कब्रिस्तान के पास होकर जाता है वह रोग का कारण बन जाता है। जलाने से ऐसा नही होता। 
        (4) कुछ कफन-चोर कब्र खोदकर शरीर का कफन उतार लेते हैं। इस प्रकार मृतक के संबंधियों के मनोभावों को ठेस पहुंचती है। मृतक को जला देने से ऐसा नहीं हो सकता।
        (5) कुछ पशु मृत-शरीर को उखाड़कर खा जाते हैं और रोगी शरीर को खाने से वे स्वयं रोगी बनकर मनुष्यों में भी रोग फैलाते हैं। जलाने से यह बुराई नहीं होती।
        (6) लाखों बीघा जमीन संसार में कब्रिस्तान के कारण रुकी पड़ी है। जलाना शुरू करने से यह खेती तथा मकान बनाने के काम आएगी। जिन्दों के लिए ही जमीन कम पड़ रही है, उसे मुर्दों ने घेर रखा है।
         
          इसलिए स्वास्थ्य रक्षा के विचार से, भूमि की कमी के विचार से, रुपये की बचत के विचार से और सदाचार के विचार से भी मुर्दों को गाड़ने की अपेक्षा जलाना ही उचित है। 

ऋषि दयानन्द ने इन सब विधियों पर विचार करते हुए सत्यार्थ प्रकाश में प्रश्नोत्तर के रूप में जो कुछ लिखा है वह इन सब रीतियों पर थोड़े-बहुत गिने-चुने शब्दों में प्रकाश डालता है । वे लिखते हैं - 
  प्रश्न - जलाना, गाड़ना, जल-प्रवाह करना और जंगल में फेंक देना -  इन चारों में से कौन सी बात अच्छी है ? 

उत्तर- सबसे बुरा गाड़ना है, उससे कुछ थोड़ा बुरा जल में डालना है, क्योंकि उसको जल-जन्तु उसी समय चीर-फाड़कर खा जाते हैं। परन्तु जो कुछ हाड़मांस व मल जल में रहेगा वह सड़कर जगत को दुःखदायक होगा। उससे कुछ एक थोड़ा-बहुत बुरा जंगल में छोड़ना है, क्योंकि यद्यपि उसको माँसाहारी पशु-पक्षी नोच खाएंगे तथापि जो उसके हाड़ की मज्जा मल सड़कर दुर्गन्ध करेगा उतना जगत का अनुपकार होगा और जो जलाना है वह सर्वोत्तम है, क्योंकि उसके सब पदार्थ अणु होकर वायु में उड़ जाएंगे। 

शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश इन पांच भूतों का बना है। इसलिए मरने के बाद शरीर के इन पांचों भूतों को 
जल्दी से जल्दी सूक्ष्म करके अपने मूल रूप में पहुँचा देना ही वैदिक पद्धति है। अग्नि द्वारा दाह-कर्म ही एक ऐसा साधन है जिससे मृत-शरीर के सब तत्त्व शीघ्र ही अपने मूल रूप में पहुँच जाते हैं।        


अंत्येष्टि का मतलब है, अंतिम संस्कार या अंत्य-क्रिया. यह हिन्दू धर्म का आखिरी संस्कार है. इसे वह्नी संस्कार या अन्वरोहण्य भी कहा जाता है. अंत्येष्टि से जुड़ी कुछ खास बातेंः 
 
अंत्येष्टि को हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से एक माना जाता है. 
 
अंत्येष्टि का शाब्दिक अर्थ है, 'अंतिम बलिदान' या 'अंतिम शुभ समारोह'. 
 
अंत्येष्टि को व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके परिजनों द्वारा किया जाता है. 
 
अंत्येष्टि में, शरीर को धोया जाता है, अभिषेक किया जाता है, और वस्त्र पहनाए जाते हैं. 
 
अंत्येष्टि में, लोग एकत्र होकर प्रार्थना करते हैं. 
 
अंत्येष्टि में, शव को लकड़ी के ढेर पर रखकर पहले मुखाग्नि दी जाती है. 
 
अंत्येष्टि में, शव को अग्नि को समर्पित किया जाता है. 
 
अंत्येष्टि में, शव के दाह के बाद अस्थियों को जमा किया जाता है. 
 
अंत्येष्टि में, अस्थियों को जलस्त्रोत में प्रवाहित किया जाता है. 
 
अंत्येष्टि में, मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ और दान किया जाता है. 
 


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