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यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

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अन्न दान कहां, कब और कैसे करें ?

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 अन्नदान एक बहुत ही महान और प्रभावशाली दान है। अन्नदान दानों में सबसे आसान है । आइए देखते हैं अन्नदान और साधारण दान में भेद क्या है । साधारण दान में नियमों का ख्याल रखना पडता है । साधारण दान में देश, काल और पात्र के विनिर्देशों को पूरा करना पडता है । तभी उसे दान के रूप में मान्यता प्राप्त होती है ।   दान में देश महत्त्वपूर्ण है । देश का अर्थ है वह स्थान जहाँ दान किया जाता है। यह स्थान उस विशेष दान के अनुरूप होना चाहिए जो किया जा रहा है। सामान्य तौर पर, पुण्य नदियों के तट पर या काशी जैसे पवित्र स्थानों पर किया जाने वाला दान स्थान की पवित्रता के कारण अधिक फलदायी होता है। इससे दान के पुण्य की वृद्धि होती है। यह इसलिए भी है क्योंकि पवित्र स्थानों पर दान करने में अधिक मेहनत लगती है और खर्च भी। उदाहरण के लिए, आप दिल्ली के निवासी हैं, किसी को घर बुलाना और उसे कपड़े देना आसान है। काशी तक जाकर वही करने के लिए अधिक शारीरिक प्रयास और खर्च भी करना पड़ता है। तो अगर आपका संकल्प दृढ है, तभी काशी तक जाकर पुण्य करेंगे । दान के फल में आपका विश्वास दृढ है तो ही ऐसा करेंगे । यह दान की गुणवत्ता और...

आप हमेशा स्वस्थ रहें यही प्रार्थना करते हैं।

 *दवा रहित जीवन जीना* *1.* जल्दी सोना और जल्दी उठना दवा है। *2.* ऊँ का जाप दवा है। *3.* योग प्राणायाम ध्यान और व्यायाम दवा है। *4.* सुबह-शाम टहलना भी दवा है। *5.* उपवास सभी बीमारियों की दवा है। *6.* सूर्य-प्रकाश भी दवा है। *7.* मटके का पानी पीना भी दवा है। *8.* ताली बजाना भी दवा है। *9.* भोजन को खूब चबाना और पानी की तरह लेना भी दवा है। *10.* भोजन की तरह चबाकर पानी पीना भी दवा है। *11.* भोजन ग्रहण करने के पश्चात वज्रासन में बैठना दवा है। *12.* खुश रहने का निर्णय भी दवा है। *13.* कभी-कभी मौन भी दवा है। *14.* हंसी-मजाक दवा है। *15.* संतोष भी दवा है। *16.* मन की शांति व स्वस्थ शरीर भी दवा है। *17.* ईमानदारी व सकारात्मकता दवा है। *18.* *निस्वार्थ प्रेम-भावना भी दवा है।* *19.* *सबका भला ( परोपकार ) करना भी दवा है।* *20.* ऐसा कुछ करना जिससे किसी की दुआ मिले, वह दवा है। *21.* सबके साथ मिलजुल कर रहना दवा है। *22.* परिवार के साथ खाना-पीना और घुलना-मिलना भी दवा है। *23.* *आपका हर सच्चा और अच्छा मित्र भी बिना पैसे के पूरा मेडिकल स्टोर ही है।* *24.* मस्त रहें, व्यस्त रहें, स्वस्थ रहें और प्रसन्...

नव वर्ष मंगलमय हो Happy New year 2025

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 *हवा लगी पश्चिम की , सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।* *ईस्वी सन तो याद रहा , पर अपना संवत्सर भूल गए ।।* *चारों तरफ नए साल का , ऐसा मचा है हो-हल्ला ।* *बेगानी शादी में नाचे , जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।* *धरती ठिठुर रही सर्दी से , घना कुहासा छाया है ।* *कैसा ये नववर्ष है , जिससे सूरज भी शरमाया है ।।* *सूनी है पेड़ों की डालें , फूल नहीं हैं उपवन में ।* *पर्वत ढके बर्फ से सारे , रंग कहां है जीवन में ।।* *बाट जोह रही सारी प्रकृति , आतुरता से फागुन का ।* *जैसे रस्ता देख रही हो , सजनी अपने साजन का ।।* *अभी ना उल्लासित हो इतने , आई अभी बहार नहीं ।* *हम अपना नववर्ष मनाएंगे , न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं ।।* *लिए बहारें आँचल में , जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।* *फूलों का श्रृंगार करके , धरती दुल्हन बन जाएगी ।।* *मौसम बड़ा सुहाना होगा , दिल सबके खिल जाएँगे ।* *झूमेंगी फसलें खेतों में , हम गीत खुशी के गाएँगे ।।* *उठो खुद को पहचानो , यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।* *चिन्ह गुलामी के कंधों पर , कबतक ढोते रहोगे तुम ।।* *अपनी समृद्ध परंपराओं का , आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।* _आर्यावर्त के वासी हैं हम , अब अपना नववर्ष...

संस्कारो पर नाज

संस्कारो पर नाज बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...इसलिए बात-बात पर अपनी माँ किशोरी से झगड़ पड़ता था ये वही माँ थी जो बेटे के लिए पति से भी लड़ जाती थी। मगर अब फाइनेसिअली इंडिपेंडेंट बेटा पिता के कई बार समझाने पर भी इग्नोर कर देता और कहता, "यही तो उम्र है शौक की,खाने पहनने की, जब आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा।" बहू खुशबू भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इसलिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी। बेटे की नौकरी अच्छी थी तो फ्रेंड सर्किल उसी हिसाब से मॉडर्न थी। बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती .....,वो कहता "कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है,मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो। क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।" और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।" आज अचानक पापा आई. सी. यू. में ए...

परमात्मा कहां रहता है

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 *प्रश्न.. परमात्मा का मुख्य और निज नाम क्या है ?* उत्तर.. परमात्मा का मुख्य निज नाम ओ३म है *प्रश्न .. परमात्मा कहां रहता है ?*  उत्तर.. परमात्मा सभी जगह रहता है।  *प्रश्न.. परमात्मा साकार है या निराकार ?*  उत्तर.. परमात्मा निराकार है  *प्रश्न.. परमात्मा जड़ है या चेतन*  उत्तर.. परमात्मा चेतन है  *प्रश्न.. परमात्मा के पांच कार्य*  उत्तर.. १.संसार को बनाना २.संसार को चलाना ३..संसार को मिटाना ४.. जो जीव जैसे कर्म करता है उसे वैसे फल देना ५..वेदों का ज्ञान देना  *प्रश्न...तीन अनादि सत्ताएं  जो कभी खत्म नहीं होती*  उत्तर.. ईश्वर, जीव, प्रकृति   *प्रश्न.. क्या परमात्मा का जन्म या मृत्यु होती है* उत्तर.. नहीं  *प्रश्न क्या आत्मा परमात्मा का अंश है*  उत्तर.. नहीं आत्मा और परमात्मा दोनो अलग-अलग हैं   *प्रश्न.. क्या आत्मा का जन्म या मृत्यु होती है।* उत्तर.. नहीं, आत्मा अजर, अमर अविनाशी है । *प्रश्न..मन जड़ है या चेतन*  उत्तर.. मन जड़ है  *प्रश्न आर्य  किसे कहते हैं*  उत्तर..उत्तम गुण कर्म स्वभाव वाले म...

जंगल मे टाइगर ने एक फैक्ट्री डाली

 जंगल मे टाइगर ने एक फैक्ट्री डाली🐅 उसमे एकमात्र वर्कर एक चींटी थी जो समय से आती जाती थी और फैक्ट्री का सारा काम अकेले करती थी🐜 टाइगर का बिजनेस बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रहा था। एक दिन टाइगर ने सोचा ये अकेली चींटी इतना सुंदर काम कर रही है अगर इसको किसी एक्सपर्ट के अंडर में रख दूँ तो और बेहतर काम कर सकती है। ये खयाल मन मे आते ही टाइगर ने एक मधुमक्खी को प्रोडक्शन मैनेजर अपॉइंट कर दिया।🐝 मधुमक्खी को कार्य का बहुत अनुभव था और वह रिपोर्ट्स लिखने में भी बहुत होशियार थी। मधुमक्खी ने टाइगर से कहा कि सबसे पहले हमें चींटी का वर्क शेड्यूल बनाना है फिर उसका सारा रिकार्ड प्रोपरली रखने के लिए मुझे एक सेक्रेटरी चाहिए होगा। टाइगर ने खरगोश को सेक्रेटरी के रूप में अपॉइंट कर दिया।🐇 टाइगर को मधुमक्खी का कार्य पसंद आया उसने कहा कि चींटी के अब तक कंप्लीट हुए सारे कार्य की रिपोर्ट दो और जो प्रोग्रेस हुई है उसको ग्राफ से शो करो। मधुमक्खी ने कहा ठीक है मगर मुझे इसके लिए कंप्यूटर,लेज़र प्रिंटर और प्रोजेक्टर चाहिए होगा🖥📽🖨 इस सबके लिए टाइगर ने एक कंप्यूटर डिपार्टमेंट बना दिया और बिल्ली को वहां का हेड ...

ब्रह्मयज्ञ अथवा सन्ध्योपासन

 *ब्रह्मयज्ञ अथवा सन्ध्योपासन* गायत्री-मन्त्र का उपदेश करके जो स्नान, आचमन, प्राणायाम, आदि क्रियाएँ हैं, उन्हें सिखलावें | स्नान से शरीर के बाह्य अवयवों की शुद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती है | आचमन- उतने जल को हथेली में लें कि वह जल कण्ठ के नीचे हृदय तक ही पहुँचे, न उससे अधिक और न न्यून | फिर हथेली के मूल और मध्यदेश में ओष्ठ लगा कर आचमन करें | आचमन से कण्ठस्थ कफ और पित्त की निवृति थोड़ी-सी होती है | तत्पश्चात् मार्जन अर्थात् मध्यमा और अनामिका अंगुली के अग्रभाग से नेत्रादि अँगों पर जल छिड़कें | इससे आलस्य दूर होता है | जो आलस्य और जल प्राप्त न हो तो न करें | पुनः समन्त्रक प्राणायाम, अघमर्षण, अर्थात् पाप करने की इच्छा भी न करें, पश्चात् मनसा-परिक्रमण, उपस्थान तथा परमेश्वर की स्तुति-प्रार्थना और उपासना की रीति सिखलावें | यह सन्ध्योपासन एकान्त, शान्त स्थान में एकाग्रचित्त होकर करें | संध्या और अग्निहोत्र सायं-प्रातः दो ही कालों में करें, क्योंकि दो ही रात-दिन की सन्धि बेलाएँ हैं, अन्य नहीं | न्यून-से-न्यून एक घंटा ध्यान अवश्य करें | जैसे समाधिस्थ होकर योगी लोग परमात्मा का ध्यान करते हैं...

वेद मन्त्रों के पाठ के ग्यारह विधि

 *वेद मन्त्रों के पाठ के ग्यारह विधि* चारो वेद के मन्त्रों को स्मरण में रखने, संरक्षित करने तथा वेदमन्त्रों के पदों में मिलावट अथवा अशुद्धि न हो इसलिए हमारे ऋषि मुनियो ने ११ तरह के पाठ करने की विधि बनाई । इनके पहले तीन पाठ को प्रकृति पाठ व अन्य आठ को विकृति पाठ कहते हैं । *प्रकृति पाठ* १) संहिता पाठ  इसमे वेद मन्त्रों के पद को अलग किये बिना ही पढ़ा जाता है । "अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् । होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥" २) पदपाठ इसमें पदों को अलग करके क्रम से उनको पढ़ा जाता है | "अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । पु॒रःऽहि॑तम् । य॒ज्ञस्य॑ । दे॒वम् । ऋ॒त्विज॑म् । होता॑रम् । र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥" ३) क्रम पाठ पदक्रम- १ २ | २ ३| ३ ४| ४ ५| ५ ६ क्रम पाठ करने के लिए पहले पदों को गिनकर, पहला पद दूसरे पद के साथ, दूसरा तीसरे पद के साथ, तीसरा चौथे पद के साथ इस तरह से पढ़ा जाता है | जैसे "अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ | य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम् | दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म् | ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम् | होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम् ||" *विकृति पाठ* ४) जटा पाठ पदक्रम -   १ २| ...

वेदाष्टक चारों वेद के प्रथम और अन्तिम मन्त्र

 *वेदाष्टक*  *चारों वेद के प्रथम और अन्तिम मन्त्र*  (1)  *ओ३म् अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् ।* *होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥* ऋग्वेद 1/1/1/1 (2) *ओ३म् स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः ।* *स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति ॥* ऋग्वेद 8/8/49/4 (3) *ओ३म् इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ वा॒यव॑ स्थ दे॒वो व॑: सवि॒ता प्रार्प॑यतु॒ श्रेष्ठ॑तमाय॒ कर्म॑ण॒ आप्या॑यध्व मघ्न्या॒ इन्द्रा॑य भा॒गं प्र॒जाव॑तीरनमी॒वा अ॑य॒क्ष्मा मा व॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघश॑ᳪसो ध्रु॒वा अ॒स्मिन् गोप॑तौ स्यात ब॒ह्वीर्यज॑मानस्य प॒शून्पा॑हि ।। १।।* यजुर्वेद 1/1 (4) *ओ३म् हि॒र॒ण्मये॑न॒ पात्रे॑ण स॒त्यस्यापि॑हितं॒ मुख॑म् ।* *यो॒ऽसावा॑दि॒त्ये पुरु॑ष॒: सोऽसाव॒हम् ।* *ओ३म् खं ब्रह्म॑ ।। १७ ।।* यजुर्वेद 40/1  (5) *ओ३म् अ꣢ग्न꣣ आ꣡ या꣢हि वी꣣त꣡ये꣢ गृणा꣣नो꣢ ह꣣व्य꣡दा꣢तये ।* *नि꣡ होता꣢꣯ सत्सि ब꣣र्हि꣡षि꣢ ॥१॥* सामवेद 1  (6) *ओ३म् स्व꣣स्ति꣢ न꣣ इ꣡न्द्रो꣢ वृ꣣द्ध꣡श्र꣢वाः स्व꣣स्ति꣡ नः꣢ पू꣣षा꣢ वि꣣श्व꣡वे꣢दाः ।* *स्व꣣स्ति꣢ न꣣स्ता꣢र्क्ष्यो꣣ अ꣡रि꣢ष्टनेमिः स्व꣣स्ति꣢ नो꣣ बृ꣢ह꣣स्प꣡ति꣢र्दधातु ॥* *ओ३म् स्वस्ति नो बृहस्...