यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

वेदाष्टक चारों वेद के प्रथम और अन्तिम मन्त्र

 *वेदाष्टक* 

*चारों वेद के प्रथम और अन्तिम मन्त्र* 


(1) 

*ओ३म् अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् ।*

*होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥*

ऋग्वेद 1/1/1/1


(2)

*ओ३म् स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः ।*

*स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति ॥*

ऋग्वेद 8/8/49/4


(3)

*ओ३म् इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ वा॒यव॑ स्थ दे॒वो व॑: सवि॒ता प्रार्प॑यतु॒ श्रेष्ठ॑तमाय॒ कर्म॑ण॒ आप्या॑यध्व मघ्न्या॒ इन्द्रा॑य भा॒गं प्र॒जाव॑तीरनमी॒वा अ॑य॒क्ष्मा मा व॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघश॑ᳪसो ध्रु॒वा अ॒स्मिन् गोप॑तौ स्यात ब॒ह्वीर्यज॑मानस्य प॒शून्पा॑हि ।। १।।*

यजुर्वेद 1/1


(4)

*ओ३म् हि॒र॒ण्मये॑न॒ पात्रे॑ण स॒त्यस्यापि॑हितं॒ मुख॑म् ।*

*यो॒ऽसावा॑दि॒त्ये पुरु॑ष॒: सोऽसाव॒हम् ।*

*ओ३म् खं ब्रह्म॑ ।। १७ ।।*

यजुर्वेद 40/1 


(5)

*ओ३म् अ꣢ग्न꣣ आ꣡ या꣢हि वी꣣त꣡ये꣢ गृणा꣣नो꣢ ह꣣व्य꣡दा꣢तये ।*

*नि꣡ होता꣢꣯ सत्सि ब꣣र्हि꣡षि꣢ ॥१॥*

सामवेद 1 


(6)

*ओ३म् स्व꣣स्ति꣢ न꣣ इ꣡न्द्रो꣢ वृ꣣द्ध꣡श्र꣢वाः स्व꣣स्ति꣡ नः꣢ पू꣣षा꣢ वि꣣श्व꣡वे꣢दाः ।*

*स्व꣣स्ति꣢ न꣣स्ता꣢र्क्ष्यो꣣ अ꣡रि꣢ष्टनेमिः स्व꣣स्ति꣢ नो꣣ बृ꣢ह꣣स्प꣡ति꣢र्दधातु ॥*

*ओ३म् स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥१८७५॥*

सामवेद 1875 


(7)

*ओ३म् ये त्रि॑ष॒प्ताः प॑रि॒यन्ति॒ विश्वा॑ रू॒पाणि॒ बिभ्र॑तः।*

*वा॒चस्पति॒र्बला॒ तेषां॑ त॒न्वो॑ अ॒द्य द॑धातु मे ॥*

अथर्ववेद  1/1/1


(8)

*ओ३म् प॒नाय्यं॒ तद॑श्विना कृ॒तं वां॑ वृष॒भो दि॒वो रज॑सः पृथि॒व्याः।*

*स॒हस्रं॒ शंसा॑ उ॒त ये गवि॑ष्टौ॒ सर्वाँ॒ इत्ताँ उप॑ याता॒ पिब॑ध्यै ॥*

अथर्ववेद 20/143/9

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