अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में ।

अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में । है जीत तुम्हारे हाथों में, है हार तुम्हारे हाथों में ।।१।। मेरा निश्चय है बस एक यही, इक बार तुम्हें पा जाऊँ मैं । अर्पण कर दूँ जगती भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में ।। या तो मैं जग से दूर रहूँ और जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ । इस पार तुम्हारे हाथों में, उस पार तुम्हारे हाथों में ।।  यदि मानुष ही मुझे जन्म मिले, तब तव चरणों का पुजारी बनूँ ।  मुझ पूजक की इक-इक रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में ।।  जब-जब संसार का बन्दी बन, दरबार तुम्हारे आऊँ मैं ।  हो मेरे पापों का निर्णय, सरकार तुम्हारे हाथों में । । मुझ में तुझमें है भेद यही, मैं नर हूँ तू नारायण है ।  मैं हूँ संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे हाथों में ।। https://youtu.be/pmPMb2y3dow

तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ


तुम्हीं ने अता की मुझे जिन्दगानी
तेरी ही महिमा फिर भी न जानी
कर्जदार तेरी दया का हूँ इतना
जिसे मैं लौटाने के काबिल नहीं 

तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना
जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ
मैं आ तो गया हूँ, मगर जानता हूँ
तेरे दर पे आने के, काबिल नहीं हूँ
तेरी मेहरबानी का

ये माना कि दाता हो, तुम इस जहाँ के
मगर कैसे झोली फैलाऊँ मैं आ के
जो पहले दिया है वो, कुछ कम नहीं है
मैं ज्यादा उठाने के काबिल नहीं हूँ
तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना
जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ
तेरी मेहरबानी का

जमाने की चाहत ने, खुद को मिटाया
तेरा नाम हरगिज, जुबां पे न आया
शर्मसार हूँ मैं, गुनाहगार हूँ मैं,
तुझे मुँह दिखाने के, काबिल नहीं हूँ
तेरी मेहरबानी का


यहीं माँगता हूँ मैं, सिर को झुका लूँ
तेरा दीद इक बार, जी भर के पा लूँ
सिवा दिल के टुकड़े के, ऐ मेरे दाता
कुछ भी चढ़ाने के, काबिल नहीं हूँ
तेरी मेहरबानी का, है बोझ इतना
जिसे मैं उठाने के, काबिल नहीं हूँ
आ तो गया हूँ, मगर जानता हूँ
तेरे दर पे आने के, काबिल नहीं हूँ
तेरी मेहरबानी का

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