विपत्तियों से घबराएँ नहीं
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*********** *विपत्तियों से घबराएँ नहीं* *********
*महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे...पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें निराश नहीं होने देता था और वह था, श्रवण कुमार के पिता का श्राप...*
*दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था।*
*श्रवण कुमार के पिता ने ये श्राप दिया था कि ''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा!''*
*महाराज दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका अर्थ है कि मुझे इस जन्म में पुत्र तो अवश्य प्राप्त होगा। तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा।*
*"यानि यह श्राप महाराज दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया"*
*ऐसी ही एक घटना सुग्रीव जी के साथ भी हुई... रामायण में प्रसङ्ग है कि सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग-अलग दिशाओं में भेज रहे थे तो उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें कौन सा स्थान या देश मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये।*
*प्रभु श्रीराम सुग्रीव का ये भगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे।*
*उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता ?*
*तो सुग्रीव ने उनसे कहा कि ''मैं बाली के भय से जब मारा-मारा फिर रहा था तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली... और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया।''*
*अब यदि सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता।*
*इसीलिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है कि, अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करे वही पुरुषार्थी है।*
*ईश्वर की ओर से मिलने वाला हर एक पुष्प यदि वरदान है तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझें।*
*यानी आज मिले सुख से आप खुश हो तो कभी यदि कोई दु:ख, विपदा, अड़चन आ जाए तो घबरायें नहीं.. क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो।*
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