यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

क्या ईश्वर अवतार लेता है ?

 *क्या ईश्वर अवतार लेता है ?*

यदि ईश्वर जन्म या अवतार लेता है, तो उसे अविनाशी, नित्य, अजन्मा, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, यह सब कहना छोड़ना पड़ेगा | परमात्मा के इन गुणों को त्यागना पड़ेगा |

# यदि ईश्वर अवतार लेता है अथवा हमारे मध्य आता है, तो इसका तात्पर्य हुआ कि आने से पूर्व वह हमारे मध्य उपस्थित नहीं था | ईश्वर तो अनादि व नित्य है । ईश्वर तो हमारे मध्य सदा से है, और उसे अवतार लेकर आने की आवश्यकता ही क्यों है ? उसका तो निराकार स्वरूप ही सर्वशक्तिशाली है । 

# कहते हैं कि ईश्वर दुष्टों के नाश के लिए अवतार लेते हैं, तो यह भी विचारणीय है कि जिस परमेश्वर के द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड संचालित होता है, जिसके द्वारा निर्मित लाखों सूर्य (तारा) नियमित कार्य कर रहे हैं, अथाह जल भण्डार युक्त बड़ी -बडी़ नदियां प्रवाहित हो रही है, जो कितने ही समुद्रों का स्वामी है, अनन्त सृष्टि, अनन्त कोटि के मानवों व प्राणियों का स्वामी है, जिसके द्वारा सृष्टि की रचना, रक्षा और प्रलय किया जाता है | क्या उस शक्तिशाली ईश्वर को एक छोटे से काम के लिए जन्म लेना पड़ेगा ? ऐसे छोटे से कार्यों के लिए उसे मनुष्य का स्वरूप धारण करना पडे़, यह तो उसकी क्षमता उसकी शक्ति व उसके विराट् स्वरूप का तिरस्कार है । और फिर उसे सर्वशक्तिमान कहना अनुचित ही होगा ।

# परमात्मा किसी को कुछ सिखाना चाहे, बताना चाहे, पापियों को दण्ड देना चाहे तो उसके लिए यह कठिन नहीं है ।वह तो पहले से ही सर्वव्यापक है । वह साकार रूप में बिना आये ही सृष्टि की रचना संचालन व प्रलय करता है, जीवों का कर्मदाता फलदाता है ।

ईश्वर प्रत्येक जीव को उसके कर्मों का फल देता है । कोई जन्म से लूले, लंगडे़, अपाहिज होते हैं, कोई निर्धन होते हैं, तो कोई अरबों के स्वामी होते हैं । किसी के पास सब कुछ है, पर वह स्वस्थ नहीं है । क्या यह परमात्मा के द्वारा निश्चित की गई कर्म-फल व्यवस्था नहीं है ?

क्या किसी को लंगडा, लूला, अन्धा, अपाहिज, निर्धन, निःसन्तान बनाने के लिए ईश्वर को जन्म लेना पड़ता है ?

# पशुओं के बच्चों को खाना, पीना, तैरना, सन्तान वृद्धि करना कौन सिखाता है ? पंछी को अपना घोंसला बनाना कौन सिखाता है ? अबोध बालक को अपनी माँ का दूध पीने कौन सिखाता है ? 

क्या इसके लिए परमात्मा को जन्म लेना पड़ता है ? ईश्वर बिना अवतार धारण किये ही यह सब कर सकता है ।

# अनेक नामों से पुकारने के कारण ही कुछ लोग परमात्मा को एक से अधिक मानते हैं । यदि वास्तव में परमात्मा कई होते तो फिर तो बडी़ समस्या हो जाती ।

 फिर ईसाइयों के भगवान, मुसलमानों के भगवान,

हिन्दुओं के भगवान -

आपस में विवाद ही करते रहते ।

ईसाइयों के भगवान अपने भक्तों की सुनकर हिन्दुओं का बुरा कर सकते थे । इसी प्रकार हिन्दुओं के भगवान मुसलमानों व ईसाइयों का बुरा कर सकते थे । परन्तु ऐसा होता नहीं है‌ । कारण कि ईश्वर एक है ।

न तो मुसलमानों में सभी सुखी रहते हैं और न हिन्दुओं और ईसाइयों में ।

सबको अपने किए का फल अवश्य ही भोगना पड़़ता है ।

# जहां अनेक संचालक हों, उनकी संचीलन विधि में कुछ तो विविधता होगी ही । किन्तु सृष्टि क्रम में आज तक कोई विविधता या परिवर्तन नहीं दिखा । जल की शीतलता, सूर्य का तेज, अग्नि की गर्मी, वायु, भुमि, पेड़, पौधे, मनुष्य का शरीर, वनस्पतियाँ आदि सब वैसी ही है, और सभी मनुष्यों के लिए हैं, चाहे हिन्दु हो चाहे सिख, ईसाई अथवा मुसलमान हो ।

 # पृथ्वी निरन्तर घूम रही है, दिन-रात सदा से वैसे ही है ।

क्योंकि इन सबका नियन्ता, उत्पत्तिकर्ता, पालक, प्रेरणास्रोत बनाने वाला एक ही है, अलग-अलग नहीं । वही सब का पालन करता है, जिसका नाम "ओ३म्" है ।

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