यजुर्वेद पाठ के लाभ

 यजुर्वेद पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं: 1. *आध्यात्मिक विकास*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक विकास होता है, और व्यक्ति के जीवन में आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। 2. *शांति और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 3. *नकारात्मक ऊर्जा का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 4. *स्वास्थ्य लाभ*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ होता है, और व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. *धन और समृद्धि*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 6. *संतान सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 7. *वैवाहिक जीवन में सुख*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 8. *व्यवसाय में सफलता*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 9. *बाधाओं का नाश*: यजुर्वेद पाठ के माध्यम से बाधाओं का नाश होता है, और व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि...

स्वाध्याय



 स्वाध्याय 


स्वाध्याय का बड़ा महत्त्व है। स्वाध्याय=स्व+अध्याय (अर्थात् अपना अध्ययन करना)इसके दो अर्थ हैं―एक तो वेद, उपनिषद् आदि ग्रन्थों का नित्यप्रति अध्ययन और गायत्री तथा ओम् का ध्यानपूर्वक तप; और दूसरा अर्थ यह है कि साधक प्रतिदिन अपना अध्ययन करे, अपने-आपको पढ़े कि मेरे सूक्ष्म शरीर की पुस्तक के पन्नों पर क्या लिखा जा रहा है। मानव स्थूल शरीर के अतिरिक्त एक सूक्ष्म शरीर भी है। यह स्थूल शरीर तो इसी जन्म में मिला और इस जन्म में छिन जाएगा, परन्तु सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मान्तर से हमारे साथ है। पिछले अनेक जन्मों में जो भी अच्छे-बुरे कर्म या संकल्प हम करते रहे हैं, उन सबका पूरा ब्यौरा (रिकॉर्ड) इस सूक्ष्म शरीर पर अंकित है, और उसी के अनुसार हम भोग भोगते हैं। इस जन्म में जो भी कर्म हम कर रहे हैं , उनका रिकॉर्ड भी इसी सूक्ष्म शरीर में रखा जा रहा है।


 साधक को प्रतिदिन यह देखना है कि मेरे सूक्ष्म शरीर पर आज अच्छी बातें लिखी गई हैं या बुरी? वे मुझे मानवता से नीचे गिराने वाली हैं अथवा मानव ही रखने वाली हैं या मानवता से ऊपर उठाने वाली हैं? यदि गिराने वाली हैं तो सावधान हो जाओ, सँभलो और निश्चय करो कि अब मैं मन को, शरीर को पतित नहीं होने दूँगा, किसी भी इन्द्रिय को आज्ञा न दूँगा कि वह मेरे सूक्ष्म शरीर पर बुरा संस्कार छोड़ने का कारण बने। साधक ! स्मरण रखो, जैसे संस्कार सूक्ष्म शरीर पर पड़ रहे हैं, अगला जन्म वैसा ही मिलेगा। यदि मन में ऐसी वृत्तियाँ आ रही हैं जो विषय-भोग, अत्यन्त काम-वासना, हिंसा, झूठ, द्रोह, धोखा, अत्यन्त लोभ, क्रोध, अमर्यादित अहंकार तथा मोह आदि दोषों वाली हैं तो समझ लो कि मनुष्यत्व छिन रहा है; दुर्लभ मानव-चोला जो प्रभु-कृपा से मिला था, छिन जाएगा ; किसी अन्य निचली योनि में जाना पड़ेगा, क्योंकि वृत्तियों के अनुसार सूक्ष्म शरीर का रुप बनता चला जाता है। जैसे वृत्तियाँ अनेक हैं, ऐसे ही योनियाँ भी अनेक हैं। वृत्तियों और कर्मों के अनुसार सूक्ष्म शरीर वही रुप धारण कर रहा है। कुत्ते, सूअर, सर्प, बिच्छू, पशु, पक्षी इत्यादि के जो स्वभाव हैं, यदि मानव-चोले वाले का वैसा ही स्वभाव है तो निश्चय रखो कि मानव-शरीर में हुए भी सूक्ष्म शरीर उसी प्रकार का बनता जा रहा है और मृत्यु-समय सूक्ष्म शरीर उसी प्रकार की योनि अर्थात् शरीर में चला जाएगा और इस जन्म में वही व्यक्ति जो मनुष्य कहलाता था अपनी वृत्तियों और कर्मों के अनुसार दूसरे जन्म में कुत्ता, साँप, बिच्छू, पशु, पक्षी, वृक्ष इत्यादि बन जाएगा। जिस प्रकार चुम्बक लोहे को अपनी ओर खींचता है, उसी प्रकार गर्भ या योनियाँ अपने स्वभाव वाले सूक्ष्म शरीरों को अपनी ओर ले जाते हैं। बड़ी सावधानी से सूक्ष्म शरीर को देखते रहो कि वह किस प्रकार के गर्भ या योनि में जाने के योग्य बन रहा है क्योंकि मनुष्य अपने संकल्पित लोक में जाता है। 

'प्रश्नोपनिषद्' में भी कहा है― *यथा सङ्कल्पितं लोके नयति–(३/१०)*

(जीव) अपने लिए तैयार किये हुए लोक में जाता है।


'वृहदारण्यकोपनिषद्' में यह आदेश है―

*"यथाकारी यथाचारी तथा भवति। साधुकारी साधुर्भवति पापकारी पापी भवति, पुण्यः पुण्येन कर्मणा भवति, पापः पापेन ।।"*

*अर्थात्―*वह जैसा करने वाला और जैसा चलने वाला (चरित्र वाला) होता है वैसा ही बनता है―नेकी करने वाला नेक बनता है, और बुराई वाला बुरा बनता है। पुण्य-कर्म से पुण्यात्मा बनता है और पाप-कर्म से पापात्मा।


यही सूक्ष्म शरीर जीव के साथ जाता और कर्मानुसार भोग भोगता है। मनुष्य की गति नीचे की और स्थावर तक और ऊपर की और ब्रह्म-प्राप्ति तक है। प्रतिदिन अपना अध्ययन करते रहना दूसरे प्रकार का स्वाध्याय है।


*महात्मा आनन्द स्वामी जी*

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वैदिक संस्कृति बनाम बाज़ार संस्कृति

धर्म किसे कहते है ? क्या हिन्दू, इस्लाम, आदि धर्म है?

गुस्से को नियंत्रित करने का एक सुंदर उदाहरण

संस्कार का प्रभाव

परमात्मा कहां रहता है