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भगवान तुम्हारे दर पे भक्त आन खड़े हैं

  भगवान तुम्हारे दर पे भक्त आन खड़े हैं संसार के बंधन से परेशान खड़े हैं, परेशान खड़े हैं ओ मालिक मेरे ओ मालिक मेरे)- 2 १. संसार के निराले कलाकार तुम्ही हो, सब जीव जंतुओं के सृजनहार तुम्हीं हो हम प्रभुका मन में लिए ध्यान खड़े हैं .... संसार के बंधन... २. तुम वेद ज्ञान दाता,पिताओं के पिता हो वह राज कौन सा है, जो तुमसे छिपा हो हम तो हैं अनाड़ी बालक बिना ज्ञान खड़े हैं संसार के बंधन... ३. सुनकर विनय हमारी स्वीकार करोगे मंझधार में है नैया प्रभु पार करोगे हर कदम कदम पर आके ये तूफान खड़े हैं संसार के बंधन... ४.दुनिया में आप जैसा कहीं ओर नहीं है इस ठौर के बराबर कहीं ठौर नहीं है अपनी तो पथिक यह मंजिल जो पहचान खड़े हैं संसार के बंधन....

आर्य समाज में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बहुत ही सरल और वैदिक परंपराओं के अनुसार होती है।

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  आर्य समाज में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बहुत ही सरल और वैदिक परंपराओं के अनुसार होती है। यहाँ कुछ मुख्य बातें हैं  मृतक को स्नान कराना  मृतक को गंगाजल या स्वच्छ जल से स्नान कराया जाता है। - *वस्त्र पहनाना*: मृतक को स्वच्छ वस्त्र पहनाए जाते हैं। -  - *अर्थी पर रखना*: मृतक को बांस की अर्थी पर लिटाया जाता है और सफेद वस्त्र से ढक दिया जाता है। - *मंत्र उच्चारण*: आर्य समाज के लोग वेदों के आधार पर मंत्र उच्चारण करते हुए समसान घाट पर जाते हैं। -  - *दाह संस्कार*: मृतक का दाह संस्कार किया जाता है। और साथ में सुगन्धित सामग्री से वेद मंत्रों द्वारा आहुति भी दी जाती है। - *अस्थियां एकत्रित करना*: दाह संस्कार के बाद अस्थियों को एकत्रित किया जाता है ।  - *श्राद्ध कर्म*: आर्य समाज में श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है, बल्कि जीवित रहते ही माता-पिता और गुरुओं की सेवा करना ही सच्ची श्रद्धा माना जाता है। आर्य समाज के अनुसार, मृत्यु के बाद शोक मनाने के बजाय जितनी जल्दी हो सके सामान्य जीवन में लौट जाना चाहिए। इसीलिए आर्य समाज में तीसरे दिन ही शांति पाठ सम्पन्न करा दिया जा...

मानव जीवन का लक्ष्य

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  *मानव जीवन का लक्ष्य* संसार में तीन वस्तुएं होती है - साध्य, साधक और साधन । "साध्य'' का अर्थ है, जिसे हम सिद्ध करना चाहते हैं अथवा प्राप्त करना चाहते हैं । ''साधक'' उसे कहते हैं, जो साध्य को प्राप्त करना चाहता है ।  और ''साधन'' उसे कहते हैं, जिसकी सहायता से साधक अपने साध्य तक पहुंच पाता है । वैदिक परिभाषाओं के अनुसार,  ''ईश्वर'' अथवा मोक्ष प्राप्ति साध्य है ।  ''आत्मा'' साधक है ।  और धन, संपत्ति, भोजन, वस्त्र, मकान आदि मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं । संसार में कुछ लोग ईश्वर या मोक्ष प्राप्ति के लिए ईमानदारी से पुरुषार्थ करते हैं । वे लोग सच्चे साधक हैं । वे धन, भोजन, वस्त्र, मकान आदि साधन सीमित मात्रा में संग्रहित करते हैं । इन साधनों की सहायता से वेदों एवं दर्शन शास्त्रों की विद्या अर्जित कर वे समाधि लगाते हैं । इनकी सहायता से वे अपने साध्य ईश्वर या मोक्ष तक पहुंच जाते हैं । वही लोग वास्तव में सही दिशा में चल रहे होते हैं । अधिकांश लोग तो साध्य को समझते ही नहीं । जीवन में मात्र भोग करना, धन कमाना, संपत्ति जमा ...

मनचाही संतान* की परमौषधि है - *"ब्रह्मचर्य

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  *"मनचाही संतान* की परमौषधि है - *"ब्रह्मचर्य"*  यदि मनचाही सन्तान चाहते हैं, तो मन, वचन और शरीर से सर्वावस्था में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें । ब्रह्मचर्य ही वह औषधि है, जिसके पालन से कुल की संस्कार तथा राष्ट्रोन्नति के योग्य सन्तानों को जन्म दिया जा सकता है |   ब्रह्मचर्य से ही मनुष्यों में दिव्य गुणों को निर्माण होता है | मनवाञ्छित सन्तान प्राप्ति के लिए योगेश्वर श्रीकृष्ण एक अद्वितीय उदाहरण हैं | वेद कहता है - "मनुर्भव जनया दैव्यं जनम ।"          अर्थात् मनुष्य बनो । "मननातिति मनुष्यः ।"           विचार कर विवेक से कर्म करने के कारण मनुष्य कहाता है । और दिव्य अर्थात् उत्तमोत्तम गुणों को प्राप्त करें तथा उत्तरोत्तर गुणों से युक्त सन्तानों को जन्म दें ।  परन्तु, यह भी ध्यान रखें । "जो दिव्य गुणों से हीन, असंयमी, व्यभिचारी अर्थात् ब्रह्मचर्यहीन सन्तानों को जन्म देते हैं, वह स्वयं ही लम्पट, अजितेन्द्रिय, वासना के कामी कीडे़ और पशुओं से भी निकृष्ट होते हैं, उनकी सन्तानें, सन्तानें नहीं अपितु एक दुर्घटना होती है ...

वर्ण-व्यवस्था के लाभ गुण-कर्म-स्वभावानुसार,

 *वर्ण-व्यवस्था के लाभ* गुण-कर्म-स्वभावानुसार,  वर्ण-व्यवस्था होने से सब वर्ण अपने-अपने गुण-कर्म और स्वभाव से युक्त होकर शुद्धता के साथ रहते हैं | वर्ण-व्यवस्था के ठीक परिपालन होने से ब्राह्मण के कुल में ऐसा कोई व्यक्ति न रह सकेगा जो कि क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वाले गुण-कर्म-स्वभाववाला का हो | इसी प्रकार अन्य वर्ण अर्थात क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भी अपने शूद्ध स्वरूप में रहेगें, वर्णसंकरता नहीं होगी | गुण-कर्मानुसार वर्ण-व्यवस्था में किसी वर्ण की निन्दा या अयोग्यता का भी अवसर नहीं रहता | ऐसी अवस्था रखने से मनुष्य उन्नतिशील होता है, क्योंकि उत्तम वर्णों को भय होगा कि यदि हमारी सन्तान मुर्खत्वादि दोषयुक्त होगी तो वह शूद्र हो जायेगी और सन्तान भी डरती रहेगी कि यदि हम उक्त चाल-चलनवाले और विद्यायुक्त न होगें तो हमें शूद्र होना पड़ेगा | गुण-कर्मानुसार वर्ण-व्यवस्था होने से नीच वर्णों का उत्तम वर्णस्थ होने के लिये उत्साह बढ़ता है | गुण-कर्मों से वर्णों की यह व्यवस्था कन्याओं की सोलहवें और पुरुषों की पच्चीसवें वर्ष की परीक्षा में नियत करनी चाहिये और इसी क्रम से अर्थात ब्राह्मण का ब्राह्मण...

लक्ष्मण रेखा....

 लक्ष्मण रेखा.... लक्ष्मण रेखा आप सभी जानते हैं पर इसका असली नाम शायद नहीं पता होगा । लक्ष्मण रेखा का नाम (सोमतिती विद्या है)  यह भारत की प्राचीन विद्याओ में से जिसका अंतिम प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था  चलिए जानते हैं अपने प्राचीन भारतीय विद्या को सोमतिती विद्या लक्ष्मण रेखा.. महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमन्त्र है--सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति,, यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का,, पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है,, वह यंत्र जल,वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है,, कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है,, जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भृमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुंचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा--राजकुमारों की शिक्षा दीक्षा कहाँ तक पहुंची है??महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि यह जो ब्रह्मचारी राम है-इसने आग्नेयास्त्र वरुणास्त्र ब्रह्मास्त्र का संधान करना सीख लिया है,, ...

आजादी का सच

 गीत -आजादी का सच ( तर्ज: अपनी आजादी को हम हरगिज़ भुला सकते नहीं )  आर्यों की कुर्बानी को हम , हरगिज़ भुला सकते नहीं । आजादी का सच कहेंगे, सच छुपा सकते नहीं।। सच छुपा सकते नहीं।। १. बाद सन सत्तावन के जब, भारत में उदासी छाई थी फिरंगियों की कूटनीति से, हमने मुंह की खाई थी तब दयानंद स्वामी ने गौरव जगाया देश का हुंकार स्वदेशी स्वराज की सबसे पहले लगाई थी। ये अटल वो सत्य है,जिसको झुठा सकते नहीं।। आजादी का सच कहेंगे ---- २. आजादी के आंदोलन का जब, सच बताया जाएगा  सबसे ज्यादा आर्य थे, जेलों में जिक्र आएगा करते रहे संध्या उपदेश,सहकर के कष्ट जेल में ये कटु वो सत्य है जिसे,जेलर ना भूल पाएगा।  नेहरू मोहानी रिपोर्ट, हम भुला सकते नही।। आजादी का सच ------ ३. परमानन्द महावीर पहुंचे काला पानी में होतीलाल पृथ्वी सिंह सड़ गए काला पानी में  जोते गये कोल्हू में जयदेव और नंद गोपाल, सेलुलर में आहुति दी,रामरखा बाली ने  हैं अमिट ये नाम, हम ये नाम मिटा सकते नहीं।। आजादी का सच--------- ४. बिस्मिल रोशन चढ गये, फांसी भरी जवानी में कोई कसर छोड़ी नहीं, गोरों ने मनमानी में  लाजपत ने ख...

मिलता है सच्चा सुख, भगवान् तुम्हारे चरणों में।

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 मिलता है सच्चा सुख, भगवान् तुम्हारे चरणों में।  यह विनती है पल-पल छिन-छिन, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।1।। मिलता है सच्चा सुख भगवान् .................. चाहे वैरी कुल संसार बने, चाहे जीवन मुझ पर भार बने।  चाहे मौत गले का हार बने, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।2।। मिलता है सच्चा सुख भगवान् ............... चाहे कष्टों ने मुझे घेरा हो, चाहे चारों ओर अंधेरा हो। पर चित्त न डगमगा मेरा हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।3।। मिलता है सच्चा सुख भगवान्................. मेरी जिह्वा पर तेरा नाम रहे, तेरी याद सुबह और शाम रहे।  बस काम यह आठों याम रहे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।4।। मिलता है सच्चा सुख भगवान्.................. चाहे कांटों में मुझे चलना हो, चाहे अग्नि में मुझे जलना हो।  चाहे छोड़ के देश निकलना हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।5।। मिलता है सच्चा सुख भगवान्.......................

ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली ले लो रे कोई ओ३म् का प्यारा

ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  ले लो रे कोई ओ३म् का प्यारा  आवाज लगाऊँ गली-गली  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  माया के दीवानों सुन लो  इक दिन ऐसा आयेगा  धन दौलत और रूप खजाना  यहीं धरा रह जायेगा  सुन्दर काया माटी होगी  चर्चा होगी गली-गली  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  मित्र-प्यारे और सगे-सम्बन्धी  एक दिन भूल जायेंगे  कहते हैं जो अपना-अपना  आग में तुझे जलायेंगे  दो दिन का ये चमन खिला है  फिर मुरझाए कली-कली  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  क्यों करता है मेरी-तेरी  तज दे उस  अभिमान को  छोड़ जगत् के झूठे धन्धे  जप ले प्रभु के नाम को  गया समय फिर हाथ न आये  तब पछताये घड़ी धड़ी  ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली गली  जिसको अपना कह-कह के  मूरख तू इतराता है  छोड़ के बन्दे साथ विपत्त/विपद् में  कभी न कोई जाता है  दो दिन का ये रैन-बसेरा  आखिर होगी चला चली   ओ३म् नाम के हीरे मोती मैं बिखरा...

प्रभु सारी दुनियाँ से, ऊँची तेरी शान है। कितना महान् है तू, कितना महान है।।

 प्रभु सारी दुनियाँ से, ऊँची तेरी शान है।  कितना महान् है तू, कितना महान है।। यहाँ वहाँ कोने कोने, तू ही मशहूर है।  निकट से निकट और, दूर से भी दूर है।  तुझमें समाया हुआ, सकल जहान है।। प्रभु सारी दुनियाँ से ऊँची................ तू ही एक मालिक है, सारी कायनात का। फूलों भरी क्यारियों का, तारों की जमात का।  तेरी ही जमीन है ये, तेरा आसमान है।। प्रभु सारी दुनियाँ से ऊँची............... सबने जो रंग देखे, सभी तेरे रंग हैं।  जग में अनेक तेरे, पालन के ढंग हैं।  तुझको तो छोटे बड़े, सबका ही ध्यान है।। प्रभु सारी दुनियाँ से ऊँची.................. जितने भी दुनियाँ में, जीव देहधारी है।  सभी तेरे प्यार के, समान अधिकारी हैं।  'पथिक' सभी को तूने, दिया वरदान है।। प्रभु सारी दुनियाँ से, ऊँची तेरी शान है। कितना महान् है तू, कितना महान है।।